लाकडाउन -10

पूरी दुनिया में अपना देश यानी भारत बिलकुल अलग तरह का है । यहाँ आम जनता की अलग दुनिया है और नेताओ और मंत्रियों या यूँ कहे सत्ता की अपनी अलग दुनिया है । 
यही वजह है कि एक तरफ़ कोरोना संकट के चलते आम आदमी का पेट, पीठ से चिपकने लगा था लेकिन इसकी परवाह सत्ता को नहीं थी । वह तो इसी चिंता में लगा रहा कि उनकी रईसी बरक़रार रहे। 
आप कल्पना कर सकते हैं कि जिस देश की 75 फ़ीसदी लोग अपने रोज़ की ज़िंदगी सौ रुपए से भी कम में गुज़ारने मजबूर हैं , उसी देश में प्रधानमंत्री के निजी सुरक्षा में रोज़ एक करोड़ 62 लाख ख़र्च होते हैं और इसमें प्रधानमंत्री के दूसरे ख़र्च शामिल नहीं है। यह लिखते समय हमें शर्म आ रही है, लेकिन सत्ता ने जब इसकी जानकारी लोकसभा के पटल पर रखी तो उनमें शर्म बिलकुल ग़ायब था। और हैरानी की बात तो यह है कि निजी सुरक्षा में हो रहे यह ख़र्च हर साल दर साल बढ़ते ही जा रहा है, और जब हमने इसका पता किया तो हैरान हो गए कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में जितना ख़र्च होता था , यह ख़र्च मोदी सरकार के कार्यकाल में लगभग दो गुणा से भी ज़्यादा होने लग गया। हम यहाँ दो लाख रुपए किलो वाले मशरूम या विदेश यात्रा में होने वाले ख़र्च की बात नहीं कर रहे हैं। हम तो सिर्फ़ यह बता रहे हैं कि सत्ता की अपनी अलग दुनिया इस महामारी काल में भी क्यों और किसलिए है।
ऐसा नहीं है कि सत्ता की रईसी अभी शुरू हुई है । नेहरु काल में भी इस पर डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने सवाल उठाए थे , तब नेहरु ने वास्तविकता समझ ख़र्च कम किया था। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री के सादा जीवन को कौन नहीं जानता ख़ुद भाजपा के दिग्गज उनका उदाहरण देते हैं और सत्ता में आते ही भूल जाते है ।
लेकिन हैरान करने वाली बात तो यह है कि प्रधानमंत्री के निजी सुरक्षा पर हो रहे रोज़ एक करोड़ 62 लाख के ख़र्च पर आज कोई सवाल उठाने वाला नहीं है।
सत्ता की रईसी का इससे विभत्स उदाहरण और कहीं नही मिलेगा। लेकिन यह चल रहा है , बेधड़क चल रहा है। और दुःख तो इस बात का है कि वे लोग इस रईसी में जी रहे हैं जो प्रभु राम को अपना आदर्श कहते नहीं थकते।
इसलिए यहाँ एक घटना का उल्लेख ज़रूरी हो गया है , ताड़का वध के बाद जब गुरु विश्वामित्र के आश्रम में रहने वाले और आसपास के जनपद के गाँवो में रहने वाले हर जाति के लोग आश्रम की रक्षा के लिए हथियार उठाकर आश्रम पहुँच गए और आश्रम का बच्चा बच्चा राक्षसों के काल बनने का सपना देख रहा था तो प्रभु राम हैरान रह गए कि लोग इतने अल्प समय में कैसे बदल गए।
प्रभु राम की इस हैरानी पर विश्वामित्र कहते हैं- सामान्य प्रजाजन के साथ यही होता है। उनके सम्मुख बलिदान का उदाहरण रखो , तो उनमें बलिदान की भावना जागती है, स्वार्थ की रखो तो स्वार्थ की । और आज जब आपने न्याय, निर्भिकता तथा वीरता का उदाहरण रखा है । प्रजाजन में दीर्घकाल से दमित ये शक्तियाँ जाग उठी।
और यह सच वर्तमान में साफ़ दिख रहा है। सत्ता के झूठ का प्रभाव फैलने लगा है। सत्ता की आलोचना को देश प्रेमी बना दिया गया ताकि कोई सत्ता की रईसी पर सवाल न उठा सके।
सत्ता की रईसी की वजह से ही मैंने शुरू में ही कहा कि अपना देश पूरी दुनिया में अलग तरह का है। क्या आप सोच सकते हैं कि कोरोना के फैलाव होने पर दूसरे देशों के प्रधानमंत्री और हमारे देश के प्रधानमंत्री ने क्या किया।
यदि कोरोना बीमारी पूरी दुनिया को अपनी चपेट में नहीं लेता तो न यह अंतर दिखता न सत्ता की रईसी पर ही बात होती।
जिन जिन देशो में बीमारियाँ फैली वहाँ-वहाँ के प्रधानमंत्रियों ने देश के लोगों के लिए क्या किया , यह बात तो एक ही झटके में ख़ारिज की जा सकती है कि वहाँ की जनसंख्या बहुत कम है , इसलिए चिकित्सा व्यवस्था या हर व्यक्ति को आर्थिक मदद आसानी से पहुँचाई जा सकी लेकिन भारत तो 130 करोड़ का देश है इसलिए यह आसान नहीं है। यह सत्ता और ट्रोल आर्मी की तरफ़ से आसानी से ख़ारिज किया जा सकता है ।
लेकिन एक ऐसा सच जिसका जवाब सत्ता को देना चाहिए या उसने यह सब क्यों नहीं किया बताना चाहिए। जिन देशों में कोरोना का प्रभाव था वहाँ के सत्ता प्रमुखों के द्वारा हर हफ़्ते प्रेस वार्ता कर देश के हालात को तो बताया ही जनसामान्य को इस लड़ाई के लिए उनके बीच पहुँच कर उन्हें प्रेरित भी किया । लोगों के बीच पहुँचकर ज़मीनी हक़ीक़त को देखने समझने की न केवल कोशिश हुई बल्कि उस तरह से निर्णय भी लिए गए। हम यहाँ पर यह नहीं कहेंगे कि दो लाख केस होने पर इटली के प्रधानमंत्री की तरह फूट फूट कर रोए और न ही न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री की तरह रोज़ आमलोगों से रूबरू हो , लेकिन प्रेस वार्ता और आम लोगों से मिलने की उम्मीद तो कर ही सकते हैं !
लेकिन सत्ता की रईसी और नैतिकता की कमज़ोरी ने ऐसा करने से रोका कहा जाय तो ग़लत नहीं होगा ।
ख़ैर! सत्ता की अपनी दुनिया का यह सच इस देश में ही है। इसलिए जब सब कुछ खोलकर भी लॉकडाउन कहा जाने लगा तो उसका दुष्प्रभाव सामने था। कोरोना का असर भयावह होने लगा । एक राज्य से दूसरे राज्य में बढ़ती आवाजाही के चलते वे राज्य भी संकट में आ गए जहाँ कोरोना पूरी तरह नियंत्रित था ।
छत्तीसगढ़ में ही कोरोना के नियंत्रण में राज्य सरकार ने क्या कुछ नहीं किया था लेकिन लॉकडाउन चार में मिली छूट और दूसरे प्रदेश से आने वालों की वजह से कोरोना का प्रभाव अचानक बढ़ गया । राजधानी से जिले और क़स्बा से गाँव से भी कोरोना के प्रकरण आने लगे।
इसका दोषी कौन? कोई नहीं जानता? और इसके लिए किसी को दोष कैसे दिया जा सकता है, जब सत्ता ही कह दे कि अब कोरोना के साथ ही जीना सिखाना होगा, तब क्या बचा रह सकता है।

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