लॉकडाउन -3

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शाम से ही शराब के जाम छलकने लगे थे, बसंत की ख़ुशबू हवा में तैरने लगा था । पूरे प्रेस क्लब परिसर में उत्सव का माहौल था। शराब की बोतलें लेने लोग टूट पड़े थे । धक्का-मुक्की का माहौल था। इस सबसे बचने कुछ लोग हाल में महफ़िल जमा चुके थे, गरम-गरम भजिया और कई तरह के चखना के बीच होली का उत्सव अपने शबाब पर था।
हाथों में पैग लिए विजय ने कहा मज़ा आ गया, ए केटी तू क्यों नहीं पी रहा है बे ! पैग बना साले ! होली में भी तेरा नौटंकी कम नहीं होता । तभी शशि वहाँ आ गया । होली का आनंद लेते लोग उसे भी गिलास उठाने कहने लगे , तो शशि ने कहा इस बार कार्यक्रम में कोई नेता नहीं आया , कोरोना से सबकी फटी पड़ी है । प्रधानमंत्री तो चार दिन पहले ही होली नहीं मनाने का निर्णय ले लिया था ! उसके देखा-देखी मुख्यमंत्री और बाक़ी नेता भी इस साल न होली मनाएँगे और न ही होली मिलन समारोह में हिस्सा लेंगे।
विजय को ग़ुस्सा आ गया। उसने सामने रखे गिलास को फेंकते हुए कहा- निकल साले ! इतना डरता है तो । जिसे अपनी जान का डर है वे तो मना नहीं रहे हैं लेकिन देश तो मनाएगा । तेरी फट रही है तो तू भी निकल।
शशि चुपचाप चला गया लेकिन शराबियो के लिए चर्चा का मुद्दा दे गया। सब अब इसी पर चर्चा कर रहे थे । ए केटी बना न बे ! पैग । तू काहे डर रहा है, तेरे को तो साढ़े तीन सौ साल जीना है। साले ! जब सरकार ही गम्भीर नहीं है तो हम काहे का ठेका लें । साल भर का त्यौहार है , मज़ा करो! दूसरे दिन रंगो का त्यौहार था , और हर साल की तरह इस साल भी प्रेस क्लब में होलिका दहन के दिन शानदार कार्यक्रम चला। डीजे के धुन में डाँस करते लोगों में कोरोना का ज़रा भी भय नहीं था । अनिल ने कहा भी, समझो जब देश का प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सहित कोई नेता होली नहीं मना रहा है तो मामला गम्भीर है , लेकिन शराब की मस्ती और भांग की ठंडाई जब सर चढ़कर बोलती है तो कौन किसका सुनता है।
शराब भी क्या चीज़ है, जो एक बार इसका दीवाना होता है वह फिर कहाँ कुछ समझता है , फिर सरकार ने अभी तक लोगों को बताया भी कहाँ है कि कोरोना ख़तरनाक ढंग से भारत में आ चुका है, और लोग सावधान हो जायें। वह तो ख़ुद ही सावधान हुआ है।
इसलिए नेताओ को छोड़ पूरा देश होली मना रहा था, संसद चल रही थी, विधायकों का ख़रीद-फ़रोख़्त चल रहा था । सब कुछ तो चल रहा था।
विजय गिलास को होंठों से दबाकर एक ही घूँट में पी गया। और इसी बीच जब विनय ज़ोर से हँसा तो विजय बोल पड़ा- क्यों बे !  बहुत हँसी आ रही है तो विनय ने कहा चलो बिरयानी खाने चलते हैं । बिरयानी पारा में शराब खोरी के बाद बिरयानी खाने का अपना मज़ा है। सीधे बाहर निकलना और बिरयानी खाने के बाद थोड़ा घूमकर होलिका दहन का फ़ोटो-शोटों ले लेंगे।
और इस तरह से एक एक करके लोग कल आने के वादे के साथ निकलते जा रहे थे , लेकिन उसकी जगह कोई न कोई आकर ले लेता था।
होली के बाद देश में कोरोना के मामले बढ़ने लगे थे लेकिन मध्यप्रदेश में मची सियासी घमासान के चलते न सरकार इस ख़तरे को देख रही थी और न ही मीडिया जगत ही इस ख़तरे को महसूसकर रहा था । ख़बरें केवल मध्यप्रदेश में चल रही सियासी घमासान की ही थी। लोगों में चर्चा भी मध्यप्रदेश में चल रहे इस उठापटक पर ही अधिक हो रही थी। कोई सिंधिया तो कोई दिग्विजय सिंह , कोई मोदी शाह की आलोचना कर रहे थे। विधायक न हुआ घोड़ा मंडी हो गया । जिसके पास जितना पैसा है , ख़रीद लो। जनता किसी को भी चुने । सरकार तो पैसे के दम पर ही बनेगा। कांग्रेस की फ़ज़ीहत हो रही थी , और केन्द्रीय सत्ता भी कांग्रेस की फ़ज़ीहत करने में लगी थी।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार रहेगी या जाएगी , इसका दावा कोई कर पाने की स्थिति में नहीं था और शायद यही वजह है कि केंद्र सरकार भी कोरोना को लेकर कोई फ़ैसला नहीं कर पा रही थी। विधायकों को यहाँ से वहाँ ले जाया जा रहा था, और देश की निगाहे कोरोना की बजाय मध्यप्रदेश पर लगी थी। कांग्रेस को कमलनाथ पर भरोसा था तो भाजपा को सिंधिया पर पूरा विश्वास था।
राजनैतिक दलों के इसी विश्वास के चलते कोरोना अपना पैर पसार रहा था। धीरे धीरे गुजरात , राजस्थान , पंजाब , महाराष्ट्र , दिल्ली और यहाँ तक की छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर भी पहुँच चुका था। लेकिन मध्यप्रदेश में सरकार बनाने में लगी केंद्रीय सत्ता को तो तभी होश आया जब लगने लगा कि अब सरकार बन जाएगी ।
दिल्ली के एक बंगले में अचानक चहल पहल तेज़ हो गई। एक नेता ने कहा सरकार बनने से अब कोई नहीं रोक सकता इसलिए बढ़ते कोरोना को लेकर कोई ठोस क़दम उठाने चाहिए। दूसरे ने कहा छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने कर्फ़्यू लगा दिया है तो क्यों न पूरे देश के लिए इसी तरह का कुछ उपाय करना चाहिए। लॉकडाउन कैसा रहेगा?
अपनी चिकने सिर पर हाथ फेरते हुए एक ने कहा मूर्ख हो क्या? अभी लॉकडाउन कर देंगे तो फिर मध्यप्रदेश का क्या होगा, ऐसे अधूरे में अब नहीं छोड़ा जा सकता। अभी और वक़्त चाहिए। कम से कम दो दिन तो लगेंगे ही।
लेकिन कोरोना का ख़तरा तो बढ़ता ही जा रहा है । दो दिन में क्या हो जाएगा। 
चुप कर! जिन राज्यों में हो रहा है वहाँ की सरकार कुछ न कुछ क़दम उठा ही रही है । अभी जनता कर्फ़्यू लगा देते हैं। और फिर सरकार के शपथ लेने के बाद ही लॉकडाउन कर देंगे।
तभी बंगले का पोर्च गाड़ियों के ब्रेक से चरमराया। नई काली गाड़ी में से दो व्यक्ति उतरे । दरबान चौकन्ना हो कर एक तरफ़ हट गया । दरबान के सेल्यूट को अनदेखा करते दोनो भीतर पहुँच गए। दोनो के आते ही सब अपनी अपनी जगह खड़े हो गए और तभी बैठे जब बैठने का इशारा मिला ।
आने वाले में से एक ने कहा और कितना समय लगेगा सरकार बनाने में ? जिसकी तरफ़ देखकर यह सवाल पूछा गया था वह ख़ामोश रहा। तो पहले वाले ने कहा हमारे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है , जो भी निर्णय लेना है , जल्दी करो क्योंकि कोरोना का असर बढ़ता ही जा रहा है तब उसने कहा तीन दिन और।
तो अपने गंजे सिर पर हाथ फेरते हुए एक नेता ने कहा सरकार बनाए बग़ैर काम नहीं चलेगा । कोरोना के लिए कुछ और योजना बनाया जाना चाहिए। 
ठीक है, लेकिन अब ज़्यादा दिन नहीं रुका जा सकता । मुझे ही कुछ करना होगा।
बाक़ी सब खाने में मशगूल हुए तो दोनो नेता वहाँ से चले गए ।
22 मार्च को जनता कर्फ़्यू का एलान हो गया और उसी दिन शाम पाँच बजे थाली, ताली, घंटी बजाने का फ़रमान !
इस दिन देश सन्नाटे में था लेकिन मध्यप्रदेश में सरकार बनाने की क़वायद को मूर्त रूप दिया जा रहा था । शाम थाली, ताली, घंटी की आवाज़ सब तरफ़ सुनाई देने लगी और इंदौर में थाली बजाते लोग जुलूस निकाल बैठे , कुछ का दावा था ये जुलूस मध्यप्रदेश में सरकार बन जाने के भरोसे का था।
देश थाली, ताली की चर्चा में खो गया। इस देश के लोगों की यही ख़ासियत है , असल मुद्दे हमेशा ही ग़ायब हो जाते हैं और सत्ता की इच्छानुसार मीडिया भी उसी बहस का हिस्सा हो जाता है ।
23 मार्च को संसद के दोनो सदनो की कार्रवाई स्थगित करने की घोषणा होती है तो मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन का। बेहद जद्दोजहद के बाद शिवराज सिंह मुख्यमंत्री बनते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया को विभीषण कहकर देश को एक मुद्दा फिर दे देते हैं ।
यानी तय था अब कुछ दिन इसी पर चर्चा होगी , बहस होगी। और कोरोना को लेकर सरकार की गम्भीरता को नापने वाले भी कुछ नहीं कर पाएँगे।

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