लॉकडाउन -5

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मौलाना साद आख़िर गया कहाँ ? उसे ज़मीन निगल गई या आसमान ? दो-दो सरकार और तमाम गुप्तचर एजेंसियों के रहते आख़िर वह मौलाना चला कहाँ गया। यह सवाल भले ही मुख्य धारा की मीडिया के लिए कोई मायने नहीं रखता हो पर सोशल मीडिया में लगातार उठाए जा रहे हैं।
आख़िर यह मौलाना साद कौन है जिसे लेकर मोदी सत्ता निशाने पर है ? दरअसल दिल्ली में मौजूद दो-दो सरकार के रहते मरकज़ में विदेशियों का जमावड़ा की ख़बर कैसे नहीं लग पाई , जबकि दिल्ली में केंद्र सरकार की तमाम जाँच एजेंसी और पुलिस बल के रहते मरकज़ में जमातियो का सम्मेलन हो जाता है । पाँच हज़ार से अधिक लोग इस सम्मेलन का हिस्सा बनते हैं और सैकड़ों की संख्या में विदेशी कोरोना काल में जमा हो जाते हैं ।
यह बात रहस्य ही रहता यदि अचानक तेलंगाना में छः मौत के बाद वहाँ के मुख्यमंत्री राजशेखर ने हल्ला न मचाया होता। और मरने वाले दिल्ली के मरकज़ से होकर आए हैं इसका ख़ुलासा नहीं होता। मुख्यमंत्री के हल्ला मचाने के बाद जब लोगों का ग़ुस्सा फूटने लगा तो रात दो बजे मुख्य सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की मौलाना साद से मुलाक़ात के बाद मरकज़ के लोगों की पहचान शुरू हुई , राज्यों को सूची भेजी गई और वहाँ के लोगों को आईसोलेशन या क्वारेटाईन किया जाने लगा , लेकिन इस मुलाक़ात के बाद मौलाना साद का पता नहीं चला ।
देश सकते में था। केंद्रीय सत्ता और दिल्ली की सत्ता से इतनी बड़ी चूक हो चुकी थी । मरकज़ में आए लोग अपने अपने घरों में लौट चुके थे और उनकी वजह से कोरोना फैलने का ख़तरा बढ़ गया था। 
मोदी सत्ता की यह बहुत बड़ी चूक थी , और यह चूक भारी पड़ने लगा था लेकिन सत्ता इस चूक को स्वीकार करने तैयार नहीं थी । जबकि आम तौर माना जाता है कि ग़लती स्वीकार करने पर ही रास्ता निकलता है , इससे लॉकडाउन करने का मतलब ही नहीं रह गया था । आख़िर दिल्ली पुलिस के रहते इतना बड़ा आयोजन हो कैसे गया? साहीन बाग़ के आंदोलन पर नज़र टेढ़ी करने वाली सत्ता आख़िर मरकज़ के मामले में कैसे चूक कर गई।
लेकिन यह चूक थी ता राजनीति का हिस्सा ? यह तो वक़्त के गर्भ में है लेकिन अचानक कट्टर हिंदुओ को मौक़ा मिल गया । मरकज़ जे बहाने वे पूरे मुस्लिम समाज पर हमला करने लगे। फेंक विडियो बनाकर थूकने और कोरोना फैलाने का आरोप लगाने लगे । पूरे समाज को कटघरे में खड़ा करने की इस कोशिश के पीछे का मक़सद मोदी सरकार को पाक साफ़ बताना था जबकि यह सब सरकार की एक के बाद एक हो रही चूक का परिणाम था। देश भर में जमात के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा चरम पर पहुँचने लगा।
लेकिन गुजरात में कोरोना प्रभावितो की संख्या लगातार बढ़ने लगी । महाराष्ट्र , दिल्ली में भी हालत ख़तरनाक होने लगे लेकिन माहौल ऐसा बनाया गया कि इस देश में कोरोना फैलने की वजह सिर्फ़ जमात है ।
जबकि दिल्ली और मुंबई में कोरोना फैलने की वजह यहाँ विदेशों से आने वाली विमान सेवा की सर्वाधिक संख्या है। और इसी वजह से इंदौर भी प्रभावित हुआ था । लेकिन यह बात कोई सत्ता कैसे मानता ? क्योंकि यह बात मानने पर सरकार के कार्यप्रणाली पर सवाल उठते और विरोधी हावी होते। इसलिए इसे धार्मिक रूप दिया जाने लगा । लेकिन सच तो यही था कि सरकार ने विदेश से आने वाले विमान सेवा भी आख़िरी समय में बंद किया था जबकि होली के बाद तब तक 46 हज़ार से अधिक लोग विदेश से आ चुके थे जिनमे जमात वाले भी सैकड़ों लोग थे।
कोरोना के बढ़ते प्रभाव और लॉकडाउन के दुष्प्रभाव को लेकर कई राज्यों से जो ख़बरें आने लगी वह मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली थी ।
राजस्थान सहित कुछ और प्रदेशों से ख़बर आने लगी कि एटीएम में पैसों की कमी हो गई है । जैसे-तैसे इस दिक़्क़त को दूर किया गया तो राशन और सब्ज़ियों की क़ीमत में उछाल की ख़बर ने आम आदमियों को ज़रूरत से ज़्यादा सामान ख़रीदने मजबूर किया। सामान की कमी होने की अफ़वाह से बाज़ारों में भीड़ बढ़ने लगी और सामाजिक दूरी की धज्जियाँ उड़ाने लगी । छत्तीसगढ़ में तो नमक की कमी का ऐसा हल्ला मचा कि नमक पचास रुपए किलो में तक बिक गया। सरकार की दिक़्क़त यह थी कि वह एल अफ़वाह को क़ाबू करती तो दूसरा शुरू हो जाता।
दूसरी तरफ़ जब लोग पाबंदी के बाद भी सड़कों पर आने लगे तो पुलिसिया सख़्ती शुरू हुई इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि कई जगह पुलिस बेरहम हो गई , और जब विडियो वायरल होने लगा तो बवाल मच गया। बवाल तो मच ही चुका था काम बंद होने की वजह से पैसे ख़त्म होने लगे तो शहर से गाँव लौटते लोग सड़कों पर दिखने लगा । लोग हर हाल में घर लौटने आतुर थे । लेकिन समाजसेवियों ने जिस तरह से मोर्चा संभाल कर खाने पीने की व्यवस्था की थी इसके चलते केवल आसपास वाले ही लौट रहे थे । आख़िर कोई बच्चा सिर्फ़ दो टाईम खाकर तो नहीं रह सकता । 
हर तरफ़ से आने वाली ख़बर घोर निराशाजनक था। तभी ताली-थाली का प्रयोग कर चुके सत्ता ने पाँच अप्रेल को घर घर दिया जलाने का एक और प्रयोग की घोषणा कर दी ।
फिर क्या था, रविवार को सूरज के अस्त होने के बाद जैसे ही अंधेरा गहराने लगा लोगों ने दीप जलाने की तैयारी शुरू कर दी और जैसे ही रात को नौ बजे पूरा देश एक बार फिर कोरोना  के ख़िलाफ़ जंग में कूद पड़ा । लेकिन जिस बात का डर था वही हुआ । उत्साह में पार्टी कार्यकर्ताओं ने जिस तरह से थाली बजाते जुलूस निकाला था वैसे ही आतिशबाज़ी शुरू कर दीपावली मना ली।
न थाली बजाना काम आ रहा था न दीप जलाना ही काम आया। कोरोना का प्रभाव लगातार बढ़ रहा था  और इसके साथ ही लोगों की तकलीफ़े भी बढ़ने लगी । लोगों के पैसे ख़त्म होने लगे । आठ बाई दस की झुग्गियो में तकलीफ़ से लॉकडाउन का पालन कर रहे मज़दूर घर लौटने व्याकुल होने लगे तो व्यापारी भी दुकान खोलने सरकार पर दबाव बनाने लगे । विभिन्न राज्यों में पढ़ने और कोचिंग के लिए गए बच्चों के अभिभावक भी परेशान हो गए।
लगातार ख़राब होते हालात को देखते हुए कई राज्यों ने पहले ही लॉकडाउन बढ़ाने का निर्णय ले लिया था । इसलिए प्रधानमंत्री ने तीन मई तक लॉकडाउन की घोषणा कर दी।
महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात में सर्वाधिक प्रभाव दिखने लगा । अब तक मध्यप्रदेश के लोभ को दोषी बताने वाले अब गुजरात में बढ़ते प्रभाव की वजह नमस्ते ट्रम्प को बताने लगे । फ़रवरी में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प का गुजरात में ज़ोरदार कार्यक्रम हुआ था और अब गुजरात के अहमदाबाद और सूरत में स्थिति ख़राब थी ।
बिगड़ते हालात को क़ाबू पाने का किसी सरकार के पास कोई योजना नहीं है यह साफ़ दिख रहा था। न राज्य ही कुछ कर रही थी न केंद्रीय सत्ता ही कोई योजना बना रही थी । एक ही नारा एक ही राग के साथ सत्ता चल रही थी । घर में रहो, ज़रूरत हो तभी निकलो।

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