लॉकडाउन-१

भूमिका
इतिहास की ऐसी नाज़ुक घड़ी से हम गुज़र रहे हैं , जो हमारी नज़रों के सामने घट रही है। शायद भारतीय इतिहास के सबसे निराशाजनक परिस्थिति के हम साक्षी हैं । इस किताब को लिखने के पीछे मेरा उद्देश्य यही है कि महामारी की इस परिस्थिति में उलझे देश को तथा महामारी में पिसती मानवता को शब्दबद्ध कर सकूँ।
देश भर की अलग अलग परिस्थिति में घट रही अलग अलग घटना जो मुझे विभिन्न अखबारो, पत्रिकाओं और न्यूज़ चैनलों में मिली उसे इकट्ठा करके किताब के रूप में पिरोने की इस कोशिश में मानवीय वेदना को बताने का प्रयास तो है ही सत्ता की निष्ठुरता को भी दिखाना है।पेट से पीठ की चिपकती व्यथा भी है और सत्ता की रईसी भी।
किताब की पृष्ठभूमि में देश में फैले कोरोंना महामारी है । इस महामारी में पूरे विश्व में लाखों लोग मारे गए । भारत में भी यह महामारी क़हर बनकर टूटा। कितने ही परिवार तबाह हो गए। मृतकों के परिवार वालों को सहारा देने वाला कोई नहीं रहा। ऐसी महामारी किसी को भी नहीं छोड़ती है ।
इस किताब को लिखते समय मुझे बहुत से शुभचिंतकों का सहयोग मिला। मैं उन सभी का शुक्रगुज़ार हूँ ।
सत्ता की रईसी के बीच आम जनमानस को लिपिबद्ध करना मुश्किल भरा काम था लेकिन वरिष्ठों की प्रेरणा ने मुझे संबल दिया और इस इतिहास के इस महामारी का साक्षी मैं इसे लिपिबद्ध कर सका ।
और अंत में-
कभी, जब वक़्त होगा
हम परखेंगे
हर सत्ता के कारनामों को
सभी पर हसेंगे
कुछ पर रोएँगे
कभी, जब वक़्त होगा
हम याद करेंगे
उस सत्ता के मसखरो को
जिसने हमारी कमज़ोरियों
पर ख़ूब मज़ाक़ किया
कभी, जब वक़्त होगा
हम सोचेंगे
सत्ता क्या
ऐसी ही होती है
निर्लज , निष्ठुर
और अपने पर
ग़ुस्सा होंगे !

कौशल तिवारी

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