लॉकडाउन -16
बचपन की कई बातें याद रह जाती है, और कभी-कभी वह बिजली सी कौंधती हमारे आपके बीच आ जाती है । जैसे -झूठ बोलना पाप है, गड्ढे में साँप है, वही तुम्हारा बाप है।
और यह दौर ही झूठ और अफ़वाह का बन गया है , निजी स्वार्थ में इस सत्य की भी अनदेखी हो रही है । वे लोग भी बड़ी आसानी से झूठ बोल देते हैं, जो सत्ता शीर्ष पर बैठ कर आदर्श बनने का ख़्वाब संजोये हैं या यह भी कह सकते है कि ऐसे झूठे लोगों को भी आदर्श मानने वालों की कमी नहीं है जबकि झूठ बोलने वालों से किसी की भले की अपेक्षा ही बेमानी है।
यह सब मैं अपने अनुभव से देख -सुन रहा हूँ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल 30 जून को जब देश के नाम सम्बोधन देते हुए कोरोना काल में पीढ़ित लोगों को पाँच किलो अनाज देने की बात कर रहे थे, तब अचानक ज़ेहन में यह आया कि कोई परिवार पाँच किलो अनाज में पूरा महीना कैसे गुज़ारा कर सकता है , फिर भानु गुप्ता का सुसाईट नोट आँखो के सामने था , जिसमें ज़िक्र था , अनाज तो सरकार दे ही दे रही है , लेकिन शक्कर, सब्ज़ी, दूध , साबुन और दवाई का क्या करूँ कहाँ से लाऊँ।
मन असहज हो गया तो गूगल में खाद्य सुरक्षा को लेकर सर्च करने लगा तो पता चला कि सरकार अपनी ही योजना को लेकर किस तरह से बेपरवाह है। और झूठ और अफ़वाह के दौर में किस तरह से सरकारी योजनाओं को अपने शब्दों में चोरी कर जनता पर अहसान करने की कोशिश करती है । ऐसे में पत्रकार कृष्णकांत का यह पोस्ट को समझा जा सकता है कि सत्ता मौजूदा संकट में भी किस तरह से आपदा को अवसर में बदल रही है ।देश में खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 से लागू है. आज प्रधानमंत्री की घोषणा यह साबित करती है कि भारत सरकार अब तक अपने ही लागू किए गए कानून का ढंग से पालन नहीं कर रही है. अगर कर रही है तो आज की घोषणा में नया क्या था? क्या एक पुरानी योजना को ही 'राष्ट्र के नाम संबोधन' का जामा पहना दिया गया?
भारत सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग की वेबसाइट के हिंदी वर्जन में शुरुआती पंक्तियों में ही लिखा गया है, "सरकार ने संसद द्वारा पारित, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम,2013 दिनांक 10 सितम्बर, 2013 को अधिसूचित किया है, जिसका उद्देश्य एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए लोगों को सस्ते मूल्यों पर अच्छी गुणवत्ता के खाद्यान्न की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध कराते हुए उन्हें मानव जीवन-चक्र दृष्टिकोण में खाद्य और पौषणिक सुरक्षा प्रदान करना है। इस अधिनियम में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत राजसहायता प्राप्त खाद्यान्न प्राप्त करने के लिए 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी के कवरेज का प्रावधान है, इस प्रकार लगभग दो-तिहाई आबादी कवर की जाएगी। पात्र व्यक्ति चावल/गेहूं/मोटे अनाज क्रमश: 3/2/1 रुपए प्रति किलोग्राम के राजसहायता प्राप्त मूल्यों पर 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्रति व्यक्ति प्रति माह प्राप्त करने का हकदार है।"
पहले से लागू व्यवस्था को नये शब्द दीजिए. देश की दो तिहाई आबादी जो फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत कवर है उसको करोड़ में गिना दीजिए, अनाज का मूल्य बता दीजिए, थोड़ा एहसान जता दीजिए, फिर भी स्टंट को छोड़कर इसमें नया क्या जुड़ जाएगा? आज की घोषणा उस चोरी का खुलासा है जिसके तहत लागू कानून को ही ठीक से लागू नहीं किया गया.
नेता स्टंट करता है, उल्लू बनाता है, क्योंकि उसे चुनाव जीतना है. लेकिन ऐसे नटवरलाल-नुमा कारनामों की तारीफ करने वाले झुट्ठों को क्या मिलता होगा?
प्रधानमंत्री के संबोधन को लेकर एक जुलाई के अख़बारों में भी प्रतिक्रिया थी । कांग्रेस और राजद ने तो प्रधानमंत्री पर यह भी आरोप लगा दिया कि वे सिर्फ़ चुनाव की सोचते हैं। जबकि कई लोग चीन पर नहीं बोलने को लेकर नाख़ुशी ज़ाहिर की । कांग्रेस की सुप्रिया श्रीनेत ने तो यहाँ तक कह कहा कि पीएम केयर में बीस हज़ार करोड़ रुपया जमा है लेकिन लोगों को राहत देने कुछ नहीं किया जा रहा है। जबकि राहुल गांधी ने छः माह तक की योजना तैयार करने का सुझाव दे डाला।
प्रधानमंत्री के इस संबोधन की ख़बर छत्तीसगढ़ के प्रमुख अखबारो में बैनर नहीं बन पाया। क्योंकि राजधानी रायपुर में कोरोना विस्फोट हो गया, 49 मरीज़ मिले । इस पर नवभारत ने हेडिंग लगाई वन्दे भारत मिशन बना कोरोना लाओ मिशन , जबकि देश में कोरोना से मौत के आँकड़े ने नया रिकार्ड बनाया। एक ही दिन में सर्वाधिक 506 मौत।
देशबंधु ने अपने सम्पादकीय में लिखा - #खोदा #पहाड़, #निकली #चुहिया
ज़िंदगी इम्तिहान लेती है - ये तो सुना था, लेकिन मोदीजी भी इम्तिहान लेते हैं, ये देश बार-बार देख रहा है। इम्तिहान लोगों के सब्र का, उन की मजबूरी का और शायद अपने प्रति लोगों की निष्ठा और समर्पण का भी। अन्यथा क्या कारण है कि जो घोषणाएं मामूली तरीके से प्रेस विज्ञप्ति या सोशल मीडिया के जरिए जनता को बताई जा सकती थीं, उसके लिए उत्सुकता का अंबार खड़ा किया गया।
अभी दो दिन पहले मोदीजी ने मन की बात कही। जिसमें घिसी-पिटी बातों के दोहराव के अलावा कुछ नहीं था। फिर कल से संदेश प्रसारित होना शुरु हुआ कि आज शाम यानी मंगलवार 4 बजे प्रधानमंत्री देश को संबोधित करेंगे। अमूमन मोदीजी रात 8 बजे ही देश को संबोधित करते हैं, इसलिए इस बार 4 बजे की टाइमिंग को लेकर उत्सुकता जगी।
अभी न चौथा महीना है, न अनलॉक का चौथा चरण, फिर 4 बजे का वक्त मोदीजी ने क्यों चुना।
खैर उत्सुकता इस बात की भी जगी कि जब अनलॉक के दूसरे चरण के दिशा निर्देश पहले ही आ गए हैं, तो क्या कोई और खास घोषणा सरकार करेगी। क्या कोरोना के साथ चीन के मसले पर मोदीजी आखिरकार देश को कुछ नयी बात बताएंगे। गृहमंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट कर इस संबोधन को सुनने की अपील की। और हर बार की तरह देश इस बार फिर प्रधानमंत्री को सुनने के लिए तैयार हुआ। लेकिन अधिकतर लोगों को खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाला एहसास इस संबोधन को सुनकर हुआ। कोरोना के फैलाव के बीच मोदीजी ने छठवीं बार देश को संबोधित किया, और पुराने माल को नई पैकेजिंग के साथ जनता के सामने पेश किया।
उन्होंने देश को बताया कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार अब दीवाली और छठ पूजा तक, यानि नवंबर महीने के आखिर तक करने का फैसला लिया गया है। इसमें 90 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होंगे। अगर इसमें पिछले तीन महीने का खर्च भी जोड़ दें तो ये करीब-करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए हो जाता है। एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड की तैयारियां हो रही हैं, इसका लाभ उन गरीब साथियों को मिलेगा, जो रोजगार या दूसरी आवश्यकताओं के लिए अपना गांव छोड़कर के कहीं और जाते हैं। उन्होंने देश के हर किसान, हर करदाता का अभिनंदन किया, जिनके कारण देश इतने बड़े संकट से मुकाबला कर पा रहा है।
मोदीजी ने अपने सरकार की उपलब्धियों का गुणगान करते हुए बताया कि बीते तीन महीनों में 20 करोड़ गरीब परिवारों के जनधन खातों में सीधे 31 हजार करोड़ रुपए जमा करवाए गए हैं। 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को 3 महीने का राशन मुफ्त दिया गया। एक तरह से देखें तो, अमेरिका की कुल जनसंख्या से ढाई गुना अधिक लोगों को, ब्रिटेन की जनसंख्या से 12 गुना अधिक लोगों को और यूरोपियन यूनियन की आबादी से लगभग दोगुने से ज्यादा लोगों को हमारी सरकार ने मुफ्त अनाज दिया है। इसके अलावा उन्होंने अनलॉक 1 में बरती गई लापरवाही को लेकर चिंता जतलाई, और मास्क, दो गज की दूरी, हाथ धोने की आदत पर ध्यान देने कहा।
कुल मिलाकर उनके भाषण में ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसमें कई तरह के गंभीर संकटों से जूझते देश के लिए एक प्रधानमंत्री का चिंतन झलकता। देश में रोजाना 15 हजार से अधिक मामले निकल रहे हैं, उससे निपटने के लिए सरकार के पास क्या तैयारी है, इस बारे में मोदीजी ने कुछ नहीं कहा। अनलॉक में मामले बढ़ने को उन्होंने लापरवाही से जोड़ा और इस तरह सारी जिम्मेदारी जनता पर ही डाल दी। पर सरकार कोरोना चेन को तोड़ने में लगातार नाकाम क्यों हो रही है, क्यों अस्पतालों में पर्याप्त व्यवस्थाएं नहीं हैं, टेस्टिंग की सुविधाएं क्या हर गरीब आदमी के पास हैं, या इसमें भी सुविधा-संपन्न लोग ही लाभ उठा रहे हैं, इन सवालों के जवाब मोदीजी को देने थे।
लगभग एक महीना होने आया, जब तेल के दामों में आग लगी हुई है। सरकार कब तक पेट्रोल और डीजल के दामों को राजकोष भरने के नाम पर बढ़ाती रहेगी और कब तक जनता पर महंगाई का बोझ डालेगी, इस बारे में भी मोदीजी ने कुछ नहीं कहा। बल्कि उन्होंने जिस तरह ईमानदार करदाताओं का ज़िक्र किया, उससे अंदेशा है कि आगे भी इसी तरह के कर भार देशहित के नाम पर जनता पर बढ़ाए जाएंगे। डीजल महंगा होने से किसानों की तकलीफ भी बढ़ेगी, लेकिन उन्हें भी मोदीजी ने धन्यवाद कहकर पुचकार दिया। बाकी उनकी चिंताएं उनके सिर पर, सरकार को इससे क्या।

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