लॉकडाउन -18
नई पीढ़ी विश्वास नहीं करती , वे महामारी की त्रासदी को क़िस्से-कहानिया समझती है । कहते है सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध की त्रासदी भी किसी महामारी से कम नहीं थी और न ही राजशाही युग में राजाओं के एक दूसरे के राज्यों पर हमले भी। लेकिन पूरे विश्व को प्रभावित करने वाला यह त्रासदी के हम सभी साक्षी हैं। साक्षी हैं सरकार की कथनी और करनी के, और तिल तिल मरते लोग , ख़ून का आँसू बहाते लोग, सब कुछ तो इही आँखो से तो देख रहे हैं।
इसलिए अब सवाल होना चाहिए कि हम सरकार किसलिए चुनते हैं ? ये एक ऐसा प्रश्न है जो सत्ता में बैठे लोगों की बेचैनी बढ़ा सकता है। इसलिए वे इस सवाल से बचने उन मुद्दों को हवा देते हैं, जिससे यह सवाल ही न पूछा जाय।
इसलिए जब कोरोना इस देश में फैलना शुरू हुआ तब से लेकर अब तक ऐसे ऐसे मुद्दे उछाले गए ताकि लोगों की असल तकलीफ़ छुपाई जा सके । सरकार की लापरवाही और ग़लती की तरफ़ से ध्यान भटकाया जा सके।
अब भी यही हो रहा है, लगातार हो रहा है। चीन के साथ तनाव के बाद तो सरकार से सवाल पूछना ही देशद्रोह होने लगा। ट्रोल आर्मी सक्रिय था, लगातार उसकी सक्रियता बढ़ते जा रही थी। इसलिए महामारी से त्रस्त जनता की जेब पर आसानी से डाका डाला जा रहा था।
एक तो जनता वैसे ही महामारी की वजह से जैसे तैसे अपनी ज़िंदगी की गाड़ी को घसीट रही थी, ऊपर से महँगाई ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा था, ऐसे में महँगाई पर कोई भी सवाल करने का मतलब ही देशद्रोही और ग़द्दार क़रार दिया जाना था।
जनता कव सवाल पुछती है? जनता की तरफ से विपक्ष ही सवाल पूछता है , लेकिन जब सवाल को ही देशभक्ति और देशद्रोही की सीमा में बाँध दिया जाय तो फिर लोकतंत्र कहाँ बचता है?
दरअसल कलयुग के इस दौर को अंध भक्तिकाल के रूप में दर्ज कर लिया जाना चाहिए। जहाँ बॉस इज आलवेज राइट है, बॉस कभी ग़लती नहीं करता , उससे कभी ग़लती हो ही नहीं सकता। इसलिए संबित पात्र जैसे लोग देश का बाप कहने से गुरेज़ नहीं करते तो जयप्रकाश नद्दा जैसे लोग तो देवताओं का नेता बता देते हैं।
भक्तिकाल का यह अजीब दौर था, जिसमें सिर्फ़ एक ही की भक्ति में सभी समाहित हो रहे थे। कोई कुछ नहीं करेगा, कोई शिकायत नहीं करेगा और न ही कोई सवाल करेगा। क्योंकि देश में इन दिनो भक्तिकाल चल रहा है ।
मुझे सैनिक सत्ता की वह कहानी आज भी याद है , जब लगातार ख़राब भोजन की वजह से सैनिकों में असंतोष की ख़बर जब सेनानायक तक पहुँची तो एक दिन सेनानायक सीधे भोजन करते सैनिकों के पास पहुँच कर कहने लगा- देखो इन दिनो हम देश की हिफ़ाज़त में जी जान लगा रहे हैं आप सभी बहुत अच्छा कर रहे है , किसी को भोजन से शिकायत हो तो वह अपनी बात बेबाक़ी से रख सकता है , इतना कहकर सेनानायक ने सैनिकों पर भरपूर निगाह डाली और इससे पहले कि सैनिक कुछ कहते उन्होंने हाथ को रोकने की मुद्रा में लाते हुए कहा -लेकिन एक बात का ध्यान रखे हम युद्द के मुहाने पर हैं और किसी ने भोजन में किसी तरह की कमी की बात कही तो उसे देशद्रोह माना जाएगा। अब कहिये किसी को कोई शिकायत तो नहीं है?
फिर क्या था सारे सैनिकों ने भोजन की तारीफ़ करना शुरू कर दिया।
इन दिनो देश का कमोबेश यही हाल है। कोरोना संक्रमितो की संख्या साढ़े पाँच लाख पार हो चुका है और इस पर कोई कंट्रोल नहीं हो पा रहा है। उद्योग व्यवसाय नौकरी रोज़गार सबका बुरा हाल है। ऊपर से पेट्रोल डीज़ल की बढ़ती क़ीमत से महँगाई भी चरम पर है लेकिन चीन के साथ हमारी स्थिति युद्द के जैसे है इसलिए महँगाई का दर्द तो सहना ही पड़ेगा।
वैसे भी सरकार के अत्याचार को जनता कब नहीं सही है, जब देखो तब लॉकडाउन, जब देखो तब कर्फ़्यू , इक्च्छा हो तो होटल खुलेगा नहीं तो बंद, बाज़ार को लेकर भी सरकार की सोच इसी तरह की है। सब बंद हो जाएगा लेकिन शराब दुकान बंद नहीं होगी, क्योंकि शराब ही सरकार के लिए कमाई का प्रमुख ज़रिया है। निजी संस्थाओं में लगातार कम होती नौकरी से मध्यमवर्ग त्रस्त हो चुका है , लेकिन सरकार डीज़ल पेट्रोल से कमाई छोड़ना ही नहीं चाहती , एक्साईज़ ड्यूटी भी कम नहीं होगी न वेट कम होगा। भले जनता कम हो जाए । वैसे भी 130 करोड़ की आबादी में दो पाँच लाख मर जाय तो क्या होगा?

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