लॉकडाउन-19

17
कोरोना का सफ़र जारी है , हम अनलॉक में जीने लगे हैं , देश जीने लगा है । दिल्ली मुंबई के लोग भी जी रहे है । अनलॉक एक और अनलॉक दो में क्या अन्तर था, पता नहीं। लेकिन अब यह प्रशासन और शासन की नज़र में उतना ख़तरनाक है? इसका भी जवाब किसी के पास नहीं होगा । लेकिन आँकड़े तो बढ़ ही रहे है । लोग मर ही रहे है । नौकरी भी जा ही रही है ।
प्रियम श्रीवास्तव लिखते हैं 
बिहार सरकार और जिला प्रशासन एकदम से लापरवाह है और उन्हें लगता है कि कोरोना का संकट टल गया है और सारे बिहार में आगामी होने वाले विधानसभा चुनाव में व्यस्त है और मस्त भी, चाहे सूबे की जनता कितनी भी अस्वस्थ हो जाए इन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता है।। इस महामारी के काल में जहां सरकार और प्रशासन को मिलकर हॉस्पिटल्स बनवाने चाहिए थे, क्वारेंटिन सेंटर बढ़ाने चाहिए थे, हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने चाहिए थे, मेडिकल हेल्थकेयर प्रोफेसनल को सबसे अधिक सुरक्षा मुहैया कराने का जिम्मा उठाना चाहिए था, टेस्टिंग, ट्रैकिंग, ट्रेसिंग, ट्रांसपेरेंट ट्रीटमेंट पर काम करना चाहिए था, वहीं ये सुशासन बाबू कहलाने वाले हमारे नीतीश बाबू (मुख्यमंत्री, बिहार)- बाहर से आए प्रवासियों के लिए टेस्टिंग, थर्मल स्क्रीनिंग तक बंद करा दी, राज्य के तमाम क्वारेंटिन सेंटर बंद हो करा दिए गए, टेस्टिंग के नाम पर कुछ है नहीं, जहां ये महामारी अपने आगोश में सारे बिहार वासियों को ले रही है, वहीं नीतीश सरकार 24 मार्च से लेके जुलाई के 4 तारीख तक मात्र 2.43L हीं टेस्ट कर कर पाई है। जब हम जनसंख्या की बात करते है तो बिहार उत्तर प्रदेश के बाद सबसे बड़ा राज्य है जिसकी जनसंख्या लगभग 12 करोड़ है जो महाराष्ट्र के साथ लगभग बराबर का है। आप देख सकते है कि महाराष्ट्र सरकार ने कितनी टेस्टिंग करी है और ज्यादा टेस्टिंग करने के करने हीं वहां इतने सारे केसेस निकल रहे है। 

शुरू से कहते आया हूं और आज भी कह रहा हूं कि, ट्रैकिंग, ट्रेसिंग, ट्रांसपेरेंट ट्रीटमेंट हीं उपाय है ताकि संक्रमित लोगों को आइसोलेट किया जा सके और फिर उसे ट्रेस और ट्रैक करके उचित ट्रांसपेरेंट ट्रीटमेंट दिया जा सके पर ये सत्ता के लोभी बड़े बड़े नामचीन हस्तियां, मंत्री संत्री लोग अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे और अपनी पीठ ख़ुद थपथपा रहे है। जब कुछ कहना होता है तो तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर ऐसे पेश किया जाता है कि भक्ति में लीन लोग कुछ सोच ना पाए और बस वाहवाही में ताली थाली पिटे और मुद्दों से भटका दिया जाए।
 सच्चाई है कि लोगों के अंदर अनलॉक करके डर को हटा दिया गया है जो एक मात्र कारण है कि हर दिन संक्रमण एक नया मुकाम हासिल कर रहा है और आज के दिन में पिछले 24 घंटे में लगभग 23 हजार केसेस निकले पर कोई भी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है। कोरोना से बाद में पर आम बीमार लोग अधिक मरेंगे जब डॉक्टर, जांच घर, नर्सेस, मेडिकल शॉप वाले संक्रमित होंगे, पर इसपर किसी की निगाह नहीं है कि साधेर तीन महीने हो गए लॉक डाउन होते हुए और भारत सरकार ने क्या क्या काम करी है हेल्थकेयर सिस्टम को सही करने के लिए।  
होने तो ये चाहिए था कि हर प्रखंड में एक कोविद अस्पताल बन जाना चाहिए था अब तक पर खार करेंगे ये लोग, सत्ता के भूखे लोग राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे है।
प्रधानमंत्री जी ने जो बोला था कि "आत्मनिर्भर" बनो, तो उनका आशय यही था कि भाई अपना अपना देख लो, हमारा क्या हम तो फ़कीर आदमी है, झोली उठाके चल पड़ेंगे। 
विजय तो दूर, हम 10% की भी जीत मानते है क्या जो आसमान से कराई देश के विभिन्न इलाकों में ये फूल वर्षा हो रही है? डॉक्टर्स को ये नहीं चाहिए। उन्हें सुरक्षा चाहिए।
क्या सच में हम जीत गए है ? या पूरी कि पूरी लड़ाई बीच में फंसी हुई है?
आज 93 दिन बीत गए, आप सरकार से सवाल पूछ सकते है कि तैयारी कितनी हुई? मुझे मोदी जी के एक ट्वीट याद आता है जो उन्होंने पहली बार इस महामारी के संदर्भ में 3 मार्च को किया थे। जिसमें उन्होंने लिखा था - 
"Had an extensive review regarding preparedness on the COVID-19 Novel Coronavirus. Different ministries & states are working together, from screening people arriving in India to providing prompt medical attention."
Link to verify: https://twitter.com/narendramodi/status/1234762637361086465?s=19
आज पूरे 60 दिन हो गए उस ट्वीट के जो आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने पहली बार किया था और बोला रहे सब तैयारियां हो गई है। पर अब क्या सरकार को ये बताना चाहेगी की क्या क्या व्यवस्था हुई है और इसे कैसे निपटा जाए?
सरकार से अब सवाल- (आज भी होने चाहिए जो अप्रैल में किया था, मई और जून में हुए और आज भी यथावत है)
-93 दिनों में हमने क्या अचीव किया (खासकर पिछले 60 दिन में जिस दिन आपका पहला ट्वीट आया था)? (अप्रैल में पोस्ट लिखने के वक़्त तक)
-डॉक्टर्स, हेल्थकेयर प्रोफेसनल और नर्सेस के लिए हमने क्या इंतेज़ाम किये?
-हॉस्पिटल्स में काम कर रह एडमिन के लोग, साफ सफाई वाले, बेड शीट बदलने वाले के लिए क्या व्यवस्था कि गई?
- अभी कोरोना वारियर्स को सबसे अधिक जरूरी क्या है? 
- जो डॉक्टर्स क्वारेंटिन किए गए है देश के विभिन्न इलाकों में, वहां का सूरत- ए - हाल क्या है?
- ये पुष्प वर्षा, ढोल नगाड़ों, बैंड बाजा ज्यादा जरूरी या PPE किट्स मुहैया कराना ताकि ये डॉक्टर्स, नर्सेस, या कोई भी जो हॉस्पिटल्स में काम कर रहे है, ओ संक्रमित ना हो?
- देश के तमाम शहरों से डॉक्टर्स की मांग थी कि उन्हें ना सही से खाना मिल रहा, और ना सही से रहने की व्यवस्था, ज्यादा जरूरी क्या?
- हर दिन इस वायरस से संक्रमित होने की संख्या एक नया रिकॉर्ड बना रहा है, फिर ये खुशी किस बात की?
- देश के विभिन्न राज्यों के जिलों में और फिर प्रखंड के लेवल पर जो क्वारेंटिन सेंटर बने है, वहां की क्या व्यवस्था है? क्या वहां मरीजों को या संदिग्धों को सही से उचित व्यवस्था के हिसाब से सबकुछ मिल रहा है? 
- राशन सामग्री वितरण का क्या हाल है, आपने अपने पंचायत में मुखिया या वार्ड सदस्य से पूछा या देखा कि डीलर कितना कालाबाजारी कर रहा है? सरकार ने इसके लिए क्या सर्विलांस की व्यवस्था करी है? 
-सरकार का डीबीटी के जरिए भेजे गए 500-1000 देने के बाद उसकी जिम्मेदारी ख़तम हो गई?
-आपने टेस्ट की रफ्तार कितनी बढ़ाई, क्या आपने जिस रफ्तार से  संक्रमण फैल रहा है, उसी रफ्तार से टेस्ट कि संख्या बढ़ाई? 
- पिछले 93 दिनों में किए टेस्ट्स की संख्या 1046450 जो प्रति 10 लाख 756 है। जब सरकार खुद और न्यूज वाले अमेरिका, इटली ज स्पेन, जर्मनी  से केसेस और मौत की तुलना करते है, तो क्या ये तुलना की गई है कि अमेरिका ने अभी भी तक लगभग 70 लाख टेस्ट करें है और बाकी देश भी अपने जनसंख्या के हिसाब से 16000 से लेकर 36000 से ज्यादा प्रति 10 लाख टेस्ट, और हम अभी सैकड़ों में हीं, आखिर ऐसा क्यों?
सरकारी कितनी लापरवाह है, ये किसी से छुपी नहीं है और सब अपने में मस्त और व्यस्त है। 
कल मेरी बात मेरे दोस्तों से हुई जो बैंगलोर, ठाणे, नवी मुंबई, दिल्ली, इंदौर, मुंबई, पटना, कोलकाता और चेन्नई में रहते है और सबका यही कहना था कि किसी को कुछ फर्क हीं नहीं पर रहा है को ये संक्रमण इतनी तेज़ी से फैल रहा है। खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है फिजिकल डिस्टेंनसिंग की, बिना मास्क या फेस कवर लगाए लोग धड़ल्ले से घूम रहे है, बाज़ार में पहले से कहीं ज्यादा भीड़ है, लोग बेफिक्र और बेपरवाह है और समझने को तैयार तक नहीं है। मेरा पर्सनली कितने लोगों से बाहर हुआ पर भक्तों से बाते करना तथ्य पर आप समझे सकते है कि क्या बोलेंगे। मैंने बाते करी टेस्टिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर की और वो चाइना और टिक टॉक पर अटक जा रहा था, इससे एक बात तो समझे में फिर से आया, आईटी सेल वालों ने काम अपना 100% किया है। 
एक आंकड़ा:
3 मई -39980 (मृत्यु - ~1400)
4 जून- 226588 ( मृत्यु- 6362)
4 जुलाई- 6,49,666 (मृत्यु- 18679

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

लाकडाउन -42

लाकडाउन -7

लाकडाउन-40