लॉकडाउन -24

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अमेरिका में कोरोना की आँधी चल रही है तो भारत में भी कई विधायक सांसद इसकी चपेट में आने लगे हैं । दिल्ली में तो एम्स में शवों की अदल बदल हो गई , अंजुम को हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार कर दिया गया तो एक यह भी ख़बर आइ कि कोरोना वायरस दिमाग़ को नुक़सान पहुँचता है और यह हवा में भी फैलता है । ये सारी ही ख़बर डराने वाली है लेकिन सत्ता अभी अनलॉक में है । लेकिन इस सबसे ख़तरनाक ख़बर थी मैसाचूसेट्स इन्स्टिटूट आफ टेक्नोलाजी का दावा वाली , इसके मुताबिक़ अभी सबसे बुरा दौर आना बाक़ी है और यही हाल रहा तो भारत सबसे प्रभावित देश बन सकता है और रोज़ 2.87 लाख केस आएँगे । वर्तमान में भारत में रोज पच्चीस हज़ार के क़रीब केस आ रहा है । 
हालाँकि सरकार ग़रीब मज़दूर के लिए राहत देने की घोषणा कर रही है लेकिन मध्यम वर्ग की हालत सबसे ज़्यादा ख़राब होने लगी है और सामाजिक विश्लेशको का कहना है कि यही हाल रहा तो आने वाले दिनो में अपराध बढ़ेंगे ।
Naruka Jitendra जी की वाल से। .......

'लॉक डाउन के बाद 25 मार्च के बाद मची अफरातफरी का अंदाजा सरकार को था या नहीं लेकिन सड़कों पर बदहवास भागते श्रमिकों को देख मध्यमवर्ग पीड़ा मे था, हाँ वो भी जो फेसबुक पर लिख रहा था ये मरवाएँगे जाहिल घर मे नहीं रुक सकते।
जब PM उस देश मे प्रवचन अंदाज मे निर्देश दे सकते जिस देश मे करोड़ों के पास घर ही नहीं, याद है न वो PM का आवाज मे बाबाओं सा आध्यात्मिक अंदाज मे बकना
"घर मे रहो ये ही विकल्प कोरोना से बचने का"
जब देश के PM को अंदाजा नहीं भारत के सामाजिक आर्थिक ढांचे का तो मध्यमवर्ग को दोष देना गलत है।
बल्कि हर राजनैतिक विचारधारा का मध्यमवर्ग दिल खोल क्षमता अनुसार भूखे प्यासे असहाय कामगारों की मदद कर रहा था।
भगवा गमछा लटकाए युवक खूब मिले उस दौरान मदद करते लेकिन कोई ये मानने को तैयार नहीं था ये मूर्ख शासन के दुष्टतम फैसले की वजह से हुआ।
जब धन इकट्ठा कर रहे थे संगठनों के माध्यम से मदद को तब एक युवा ने क्षमता से अधिक पेशकश की तो मैं बोला इतने की जरूरत नहीं यों भावनाओं मे बहकर जब देश के मुखिया को ही दर्द नहीं जनता का।
तो वो युवा तमतमाते बोला "अगर पप्पू होता तो आधा भारत कोरोना से मर लेता"
मैंने चुप रहना उचित समझा।
लेकिन ये मध्यमवर्गीय मदद भावना अप्रैल के अंत तक ठंडी पड़ गयी।
शुरुआत मे नोकरी पेशा जोश मे था जब सरकार ने एलान कर दिया वेतन देना पड़ेगा, नोकरी से निकालना नहीं चलेगा।
मई मे सरकार U टर्न ले गए आदेश वापस ले लिया और सुप्रीम कोर्ट भी लालाओं की भाषा बोल रहा था।
होटल,ट्यूरिज्म,एविएशन, टेक्सटाइल न जाने कितने उद्योगों ने तो अप्रैल की तनख्वाह तक न दी और मई आते आते 50% से अधिक नोकरी पेशा बेरोजगार था या बिना वेतन।
असंगठित श्रमिक वर्ग की मदद को तो मध्यमवर्ग था लेकिन अब EMI पर कार मे घूमने वाले मध्यमवर्ग के घर मे राशन तक नहीं है, चेहरे लटके हैं।
ये मध्यमवर्ग उनमे नहीं जो 1000 किलोमीटर चल कर जीने की जिद्दोजहद जारी रखता है, ये वो वर्ग है जो फेसबुक पर चाहे पोस्ट लिखे कि देशहित मे 200/- भी पेट्रोल की परवाह नहीं लेकिन वाहन मे पेट्रोल को पैसे न हों तो आत्महत्या को भागता है।
आत्महत्याएं हो भी रही हैं लेकिन कुछ ख़बर नहीं बन रहीं कुछ अभी उधारी या जमा से काम चल गया।
लेकिन आने वाला समय भयावहता की आहट लिए है।
दबी जुबान मे सरकार प्रशंसक मध्यमवर्ग भी गुहार लगा रहा है ट्विटर पर..
ये कैसी EMI माफ है चक्रवर्ती ब्याज लग रहा।
कुछ कीजिए सरकार बैंक रिकवरी वाले गुंडे रोज परेशान कर रहे।
आपने तो कहा था तनख्वाह देना अनिवार्य मुझे 3 महीने से नहीं मिली।
नोकरी चली गयी अब घर,कार सब जाएंगे EMI कैसे चुकाऊं।
"सेव मिडिल क्लास" नाम से ये कैम्पेन ट्विटर पर चल रहा है लेकिन अभी भी गुस्से विद्रोह जैसा कुछ नहीं है।
क्यों नहीं है इस सवाल का बस एक ही जवाब मिलता है कि देश की जनता को विकल्प न नजर आए तबतक कौडे लगाने वाला भी मसीहा लगता है।
अब सवाल ये है कि विकल्प कैसे खड़ा होगा जब पूंजी,मीडिया, ब्यूरोक्रेसी, गुंडे सब सरकार के साथ हैं...

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