लॉकडाउन-26

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कोरोना को लेकर चिंता बढ़ने लगी है लेकिन सरकार अब भी यह तय नहीं कर पा रही है कि उसे करना क्या चाहिए। कहने को तो देश में अनलॉक चल रहा है लेकिन वास्तव में कई राज्यों के बहुत से शहरों में लॉकडाउन चल रहा है । ऐसे में कहना कठिन है कि सरकार कोई ठोस उपाय भी करेगी 
यह लेख विज्ञान प्रसार के साइंस कम्युनिकेशन ट्रेनिंग विभाग के प्रमुख डॉक्टर टीवी वैंकटेश्वरण ने पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के लिए लिखा है. 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इस लेख में जिक्र किया गया था कि कोरोना की वैक्सीन 2021 के पहले नहीं आ सकती. लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसा दावा किया गया है कि पीआईबी की बेबसाइट से आनन-फानन में 2021 वाली लाइन हटा कर दोबारा से लेख को अपलोड किया है. 

ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि कोरोना के वैक्सीन को लेकर सरकार हड़बड़ी में क्यों दिख रही है? और क्या पहले से तारीख़ का एलान कर के वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया सही तरह से पूरी की जा सकती है? 
क्या कहा गया था, विज्ञान प्रसार के लेख में ? 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ विज्ञान प्रसार के लेख में कहा गया था कि भारत के कोवैक्सिन और जाइकोव-डी के साथ-साथ दुनिया भर में 140 वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों में से 11 ह्यूमन ट्रायल के दौर में हैं, लेकिन इसके इस्तेमाल के लिए लाइसेंस मिलने में 15 से 18 महीने लगेंगे.

इससे पहले बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए इनमें से किसी भी वैक्सीन के तैयार होने की संभावना नहीं है.

हालांकि बाद में इस लेख से ' इसके इस्तेमाल के लिए लाइसेंस मिलने में 15 से 18 महीने लगेंगे. ' वाली लाइन हटा ली.

अब इस लेख में लिखा गया है कि कोविड-19 के लिए भारतीय वैक्सीन, कोवैक्सिन और जाइकोव-डी के इंसानों पर परीक्षण के लिहाज से भारत के दवा महानियंत्रक की ओर से मंजूरी मिलना कोरोना वायरस महामारी के 'अंत की शुरुआत' है.

यह लेख अब भी पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) की वेबसाइट पर मौजूद है. लेख में ये भी दावा किया गया है  कि विश्व में जहां कहीं भी कोरोना की वैक्सीन बने, भारत में इसके उत्पादन के बिना पूरे विश्व में इसका मिलना संभव नहीं है. 

पीआईबी की वेबसाइट पर प्रकाशित लेख में अब वैक्सीन की कोई समय सीमा नहीं बताई गई है. 


डॉक्टर टीवी वैंकटेश्वरण का पक्ष

इस पूरे विवाद पर बीबीसी संवाददाता सरोज सिंह ने डॉक्टर टीवी वैंकटेश्वर से फ़ोन पर संपर्क किया.

उन्होंने पूरे विवाद पर कुछ भी कमेंट करने से इनकार कर दिया. बीबीसी से फ़ोन पर बातचीत में उन्होंने कहा, "ये सब पॉलिसी इश्यू हैं. सही लोग ही इस पर कमेंट करेंगे तो बेहतर होगा. जहां तक मेरा सवाल है. मैं पीआईबी पर प्रकाशित रिवाइज़्ड वर्जन के साथ हूं."  

लेकिन क्या आपने अपने लेख में वैक्सीन के 2021 में बनने की बात लिखी थी, और क्या पीआईबी ने वो हिस्सा हटाया है ?

डॉक्टर टीवी वैंकटेश्वरण ने कहते हैं, "नहीं, मैंने ऐसा कुछ भी नहीं लिखा था. ये एक जनरल कमेंट था. मैं एक बार फिर दोहराता हूं कि मैं पीआईबी पर प्रकाशित रिवाइज़्ड वर्जन के पक्ष में हूं, उसी के साथ हूं."

तो क्या अब आप मानते हैं कि ये वैक्सीन छह हफ्तों में भारत में तैयार हो सकता है? 

डॉक्टर वैंकटेश्वर का कहना है, "इस सवाल पर मेरा कमेंट उचित नहीं होगा. इस वैक्सीन के ट्रायल में जो लोग लगे हैं, उनका इस सवाल पर कमेंट उचित होगा. मेरा रोल इस लेख के ज़रिए बस आसान शब्दों में इतना बताना था कि कैसे एक वैक्सीन काम करता है. बस इतना ही इस लेख का फोकस था."

"कब तक वैक्सीन तैयार होगी, वो मेरा फोकस नहीं था. इसलिए वैक्सीन तैयार होने की बात मेरे लेख के मुख्य विषय के लिए ज़रूरी नहीं था. अब ये लेख ज़्यादा फोकस्ड है और मेरे मूल विषय के ज़्यादा क़रीब है. "

तो क्या आप मानते हैं कि आपके लेख को पीआईबी ने एडिट किया? 

इस सवाल के जवाब में डॉक्टर वैंकटेश्वर बीबीसी संवाददाता से ही प्रश्न कर बैठे. उन्होंने पूछा. "आप एक रिपोर्टर हैं. आप जब लेख लिखती हैं तो आपके एडिटर उसमें एडिटिंग नहीं करते? क्या ऐसा नहीं होता? होता है ना?"

उन्होंने आगे कहा, अगर आप ये कहना चाहतीं है कि किसी तरह का सेंसर किया गया है, तो मैं इससे सहमत नहीं हूं."

क्या कहते हैं जानकार? 

दिल्ली में मौजूद एम्स अस्पताल के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने भी एक निज़ी न्यूज़ चैनल के साथ साक्षात्कार में ये साफ़ कह दिया है कि 15 अगस्त तक स्वदेशी वैक्सीन के ट्रायल की बात अव्यावहारिक प्रतीत होती है.

उन्होंने साक्षात्कार में स्पष्ट किया कि आईसीएमआर की चिठ्ठी का उद्देश्य मात्र इतना था कि हर संस्थान अपने-अपने काम को तेज़ी से करने की ओर आगे बढ़े.  


दिल्ली के एम्स में भी भारत बायटेक द्वारा बनाई गए इस स्वदेशी वैक्सीन का ट्रायल होना है.

वहीं बायोकॉन इंडिया कि चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ ने भी ट्विटर पर लिखा है कि, "कोविड19 वैक्सीन के लिए फेज़ एक से तीन तक के ट्रायल 6 महीने में पूरा कर पाना असंभव है."


भारत बायोटेक की तैयारी   

आईसीएमआर के ख़त से कुछ घंटों पहले बीबीसी तेलुगु संवाददाता दीप्ति बथिनि ने भारत बायोटेक की मैनेजिंग डायरेक्टर सुचित्रा एला से बात की.

सुचित्रा एला का कहना था, "ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल के पहले फ़ेज़ में एक हज़ार लोगों को चुना जाएगा. इसके लिए सभी अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइन्स का पालन किया जाएगा. वॉलंटियर्स के चुनाव पर भी कड़ी नज़र रखी जाएगी. देश भर से उन लोगों को ट्रायल के लिए चुना जाएगा जो कोविड-फ़्री हों. उन लोगों पर क्या प्रतिक्रिया हुई इसको जानने में कम से कम 30 दिन लगेंगे."

उन्होंने आगे कहा, "हमें नहीं पता कि भौगोलिक स्थितियों का भी असर होगा. इसलिए हमने पूरे भारत से लोगों को चुना है. हम ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इसकी अच्छी प्रतिक्रिया हो. पहले फ़ेज़ के आंकड़ों को जमा करने में 45 से 60 दिन लगेंगे."

"ब्लड सैंपल ले लेने के बाद टेस्ट की साइकल को कम नहीं किया जा सकता है. टेस्ट के नतीज़ों को हम तक पहुंचने में 15 दिन लगेंगे."

अभी  क्या कुछ करना बाक़ी है?

भारत में कोविड-19 की वैक्सीन को तैयार करने की तमाम कोशिशें चल रही हैं. लेकिन अभी भी इस दिशा में काफ़ी कुछ किए जाने की ज़रूरत है.

वैक्सीन तैयार होने के बाद पहला काम इसका पता लगाना होगा कि यह कितनी सुरक्षित है. अगर यह बीमारी से कहीं ज़्यादा मुश्किलें पैदा करने वाली हुईं तो वैक्सीन का कोई फ़ायदा नहीं होगा.

क्लीनिकल ट्रायल में यह देखा जाता है कि वैक्सीन कोविड-19 को लेकर प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर पा रही है ताकि वैक्सीन लेने के बाद लोग इसकी चपेट में ना आएं.

वैक्सीन तैयार होने के बाद भी इसके अरबों डोज़ तैयार करने की ज़रूरत होगी. वैक्सीन को दवा नियामक एजेंसियों से भी मंजूरी लेनी होगी.

ये सब हो जाए तो भी बड़ी चुनौती बची रहेगी. दुनिया भर के अरबों लोगों तक इसकी खुराक़ पुहंचाने के लिए लॉजिस्टिक व्यवस्थाएं करने का इंतज़ाम भी करना होगा.

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