लॉकडाउन-27
न लोग दहशत में थे न सरकार ही फ़िक्रमंद थी , जबकि कोरोना अपनी रफ़्तार बढ़ाता ही जा रहा था। सरकार में बैठे लोग अब भी यह तय नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें क्या करना है । छः माह बीत चुके थे लेकिन सत्ता केवल अपनी रईसी की सोच रही थी । और आम आदमी के सामने ज़िन्दगी बचाने के लिए घर से निकलना ज़रूरी हो चला था हालाँकि चीन और विकास दुबे जैसी घटनाओं के चलते सरकार की लापरवाही की तरफ़ से आम आदमी का ध्यान ज़रूर हट गया था ।
दूसरे देशी में इसके वेक्सीन के लिए काम भी आगे बढ़ रहा था ।जयपुर में जन्मे और फिलहाल लंदन में रह रहे दीपक पालीवाल, उन चंद लोगों में से एक हैं, जिन्होंने ख़ुद ही वैक्सीन ट्रायल के लिए वॉलेंटियर किया है. कोरोना वैक्सीन जल्द से जल्द बने, ये पूरी दुनिया चाहती है. इसके प्रयास अमरीका, ब्रिटेन, चीन, भारत जैसे तमाम बड़े देश में चल रहे हैं. ये कोई नहीं जानता कि किस देश में सबसे पहले ये वैक्सीन तैयार होगा. पर हर वैक्सीन के बनने के पहले उसका ह्यूमन ट्रायल जरूरी होता है.
लेकिन इस वैक्सीन के ट्रायल के लिए आप आगे आएँगे? शायद इसका जवाब हम में से ज्यादातर लोग 'ना' में देंगे.
ऐसे लोगों को ढूंढने में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को दिक्कतें भी आती है.
दीपक जैसे लोगों की वजह से कोरोना के वैक्सीन खोजने की राह में थोड़ी तेज़ी ज़रूर आ जाती है.
फैसला लेना कितना मुश्किल था?
अक्सर लोग एक कमज़ोर पल में लिए इस तरह के फ़ैसले पर टिके नहीं रह सकते. दीपक अपने इस फैसले पर अडिग कैसे रह सके?
इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, "ये बात अप्रैल के महीने की है. 16 अप्रैल को मुझे पहली बार पता चला था कि मैं इस वैक्सीन ट्रायल में वॉलेंटियर कर सकता हूं. जब पत्नी को ये बात बताई तो वो मेरे फ़ैसले के बिलकुल ख़िलाफ थी. भारत में अपने परिवार वालों को मैंने कुछ नहीं बताया था. ज़ाहिर है वो इस फैसले का विरोध ही करते. इसलिए मैंने अपने नज़दीकी दोस्तों से ही केवल ये बात शेयर की थी."
ऑक्सफ़ोर्ड ट्रायल सेंटर से मुझे पहली बार फ़ोन पर बताया गया कि आपको आगे की चेक-अप के लिए हमारे सेंटर आना होगा. लंदन में इसके लिए पाँच सेंटर बनाए गए हैं. मैं उनमें से एक सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल में गया. 26 अप्रैल को मैं वहाँ पहुँचा. मेरे सभी पैरामीटर्स चेक किए गए और सब कुछ सही निकला.
इस वैक्सीन ट्रायल के लिए ऑक्सफ़ोर्ड को एक हज़ार लोगों की आवश्यकता थी, जिसमें हर मूल के लोगों की ज़रूरत थी - अमरीकी, अफ्रीकी, भारतीय मूल सभी के.
ये इसलिए भी ज़रूरी होता है ताकि वैक्सीन अगर सफल होता है तो विश्व भर के हर देश में इस्तेमाल किया जा सके.
दीपक ने आगे बताया कि जिस दिन मुझे वैक्सीन का पहला शॉट लेने जाना था, उस दिन व्हॉटसेप पर मेरे पास मैसेज आया कि ट्रायल के दौरान एक वॉलंटियर की मौत हो गई है.
"फिर मेरे दिमाग़ में बस वही एक बात घूमती रही. ये मैं क्या करने जा रहा हूं. मैं तय नहीं कर पा रहा था कि ये फ़ेक न्यूज़ है या फ़िर सच है. बड़ी दुविधा में था, क्या मैं सही कर रहा हूं. लेकिन मैंने अंत में अस्पताल जाने का निश्चय किया. अस्पताल में पहुँचते ही उन्होंने मुझे कई वीडियो दिखाए और इस पूरी प्रक्रिया से जुड़े रिस्क फै़क्टर भी बताए. अस्पताल वालों ने बताया की वैक्सीन असल में एक केमिकल कंपाउड ही है."
"मुझे बताया गया कि इस वैक्सीन में 85 फीसदी कंपाउड मेनिंनजाइटिस वैक्सीन से मिलता जुलता है. डॉक्टरों ने बताया कि मैं कोलैप्स भी कर सकता हूं, आर्गन फेलियर का ख़तरा भी रहता है, जान भी जा सकती है. बुख़ार, कपकपी जैसे दिक्कतें भी हो सकती है. लेकिन इस प्रक्रिया में डॉक्टर और कई नर्स भी वॉलेटियर कर रहे थे. उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया. "
दीपक ने आगे बताया कि एक वक़्त उनके मन में भी थोड़ा सा संदेह पैदा हुआ था. जिसके बाद उन्होंने अपनी एक डॉक्टर दोस्त से इस विषय में ईमेल पर सम्पर्क किया. दीपक के मुताबिक़ उनकी दोस्त ने उन्हें इस काम को करने के लिए राज़ी करने में बड़ी भूमिका निभाई.
कोरोना वायरस का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है, लेकिन अब तक इसकी वैक्सीन नहीं बन पाई है। हालांकि इसको लेकर दुनियाभर के वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं। ये प्रयास इस जानलेवा बीमारी की शुरुआत में ही वैज्ञानिकों ने शुरू कर दिए थे। इस क्रम में अमेरिका में एक महिला को वैक्सीन भी लगाई गई थी। यह पहली महिला थी, जिसने कोरोना की वैक्सीन लगवाई थी। मार्च महीने में 43 वर्षीय जेनिफर हॉलर को सबसे पहले वैक्सीन की खुराक दी गई थी। अब जेनिफर ने वैक्सीन से जुड़े अपने अनुभव साझा किए हैं।
अमेरिका के सिएटल में रहने वालीं जेनिफर का कहना है कि वह अच्छा महसूस कर रही हैं। कोमो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग चार महीने बीतने के बाद भी उनके शरीर पर वैक्सीन का कोई नकरात्मक असर देखने को नहीं मिला है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका के सिएटल में रहने वालीं जेनिफर को mRNA-1273 नाम की वैक्सीन दी गई थी। इस वैक्सीन के नकरात्मक और सकरात्मक असर देखने के लिए अमेरिका के केपी वॉशिंगटन रिसर्च इंस्टीट्यूट में शोध जारी है।
जेनिफर को दी गई वैक्सीन को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और मॉडर्ना कंपनी ने तैयार किया था। कंपनी का दावा है कि वैक्सीन लगाने के बाद किसी भी व्यक्ति में कोरोना का संक्रमण नहीं हो सकता, क्योंकि उसमें वायरस नहीं होता।
18 मई को मॉडर्ना कंपनी ने ये एलान किया था कि वैक्सीन के पहले चरण के परिणाम सकरात्मक आए हैं। मॉडर्ना ने यह भी कहा था कि जुलाई में वैक्सीन के तीसरे चरण का अध्ययन किया जाएगा। कंपनी के मुताबिक, इस चरण में 30 हजार लोगों को वैक्सीन की खुराक दिए जाने की योजना है।

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