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कोरोना के चलते एक बार फिर छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में लॉकडाउन करना पड़ रहा था लेकिन ये पूरा लॉकडाउन नहीं था। शाम सात बजे के बाद से लॉकडाउन किया गया जबकि हालात चीख़ चीख़ कर कह रहे थे कि कुछ भी ठीक नहीं है और जल्द ही कोई कठोर क़दम नहीं उठाए गए तो हालत बदतर हो सकता है । 

देश में हर तीन दिन में एक लाख केस होने लगा तो मौत भी पाँच सौ से अधिक हो रहा था , जबकि दूसरी तरह की समस्याए भी आने लगी थी , लेकिन अभी भी सरकार किसी तरह का ठोस उपाय नहीं कर पा रही थी । अस्पताल से लेकर बाज़ार और शहर से लेकर गाँव तक कोरोना का असर तो था लेकिन लोगों के पास कोई उपाय भी नहीं था। कोरोना वायरस के चलते लगाए गए लॉकडाउन का असर स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी पड़ा है. एक तरफ़ अस्पतालों पर दबाव बढ़ गया तो दूसरी तरफ़ लोग स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह गए.

इसका असर महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य पर भी हुआ और उन्हें गर्भपात और गर्भनिरोध की पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल पाईं. इसके चलते उन्हें गर्भपात के असुरक्षित तरीक़ों का रुख़ करना पड़ा.

आईपास डिवेलपमेंट फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ लॉकडाउन के तीन महीनों (25 मार्च से 24 जून) के दौरान 18 लाख 50 हज़ार महिलाओं ने असुरक्षित गर्भपात कराया या अनचाहा गर्भ हुआ.

आईपास फाउंडेशन महिलाओं के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाला ग़ैर-सरकारी संस्थान है. इस संस्थान ने लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव का महिलाओं पर असर को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है.

रिपोर्ट में क्या है?

इस रिपोर्ट के लिए तीन महीनों में होने वाले अनुमानित गर्भपात को आधार बनाया गया है. इसके लिए लांसेंट की साल 2015 की एक रिपोर्ट के आँकड़ों का इस्तेमाल किया गया.

लांसेंट की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में एक साल में एक करोड़ 56 लाख (1.56 करोड़) गर्भपात होते हैं. इनमें से 73 प्रतिशत केमिस्ट से मिलने वाली गर्भपात दवाइयों, 16 प्रतिशत निजी स्वास्थ्य सुविधाओं, 6 प्रतिशत सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और 5 प्रतिशत पारंपरिक असुरक्षित तरीक़ों से होते हैं.

रिपोर्ट कहती है कि तीन महीनों में औसत 39 लाख गर्भपात होने का अनुमान लगाया था लेकिन इसमें से 18 लाख 50 हज़ार गर्भपात नहीं हो पाए.

रिपोर्ट के मुताबिक़ गर्भपात में सबसे ज़्यादा परेशान शुरुआती 40 दिनों (लॉकडाउन 1) में हुई. तब 59 प्रतिशत गर्भपात नहीं हो पाए, अगले 14 दिनों (लॉकडाउन 2) में 46 प्रतिशत, इससे आगे 14 दिनों (लॉकडाउन 3) में 39 प्रतिशत गर्भपात नहीं हो पाए.

हालांकि, इसके बाद हालात सुधरते गए. एक से 24 जून तक की अवधि में इस मामले में सुधार देखा गया. इस दौरान 33 प्रतिशत गर्भपात नहीं हुए.

गर्भपात के आँकड़े जुटाने के लिए तीन माध्यमों से जानकारी जुटाई गईं. गर्भपात के लिए महिलाएं सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में जाती हैं या केमिस्ट से गर्भपात की दवाइयां लेती हैं. कई लोग गैर-क़ानूनी तरीक़े से भी गर्भपात कराते हैं लेकिन रिपोर्ट में इसे हिस्सा नहीं बनाया गया है.

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और अस्पताल

निजी स्वास्थ्य सुविधाएं – क्लीनिक्स, नर्सिंग, मैटरनिटी होम्स और अस्पताल

क्यों हुए असुरक्षित गर्भपात

इस रिपोर्ट के नतीजों को लेकर आईपास फाउंडेशन के सीईओ विनोज मेनिन कहते हैं कि आपदा प्रबंधन के दौरान प्रजनन स्वास्थ्य सुविधाएं हमेशा प्रभावित होती हैं जिसके चलते अनचाहे गर्भधारण और असुरक्षित गर्भपात बढ़ जाते हैं. कुछ ऐसी ही स्थितियां कोरोना महामारी के दौरान भी बनीं. महिलाओं को गर्भपात और गर्भनिरोध के सुरक्षित तरीके नहीं मिल सके. इसके पीछे कई कारण जिम्मेदार थे.

- महिलाएं अस्पतालों और क्लीनिक तक नहीं पहुंच पा रही थीं. एक तो लोग कोविड के कारण अस्पताल जाने से डर रहे थे और दूसरा परिवहन बंद था.

- लॉकडाउन के दौरन पुलिस की सख्ती थी और बाहर निकलने वाले को कारण बताना ज़रूरी थी. ऐसे में ये बताना कि गर्भपात के लिए अस्पताल जा रहे हैं, थोड़ा मुश्किल होता है. इसलिए भी लोग बाहर निकलने में झिझक रहे थे.

- केमिस्ट की दुकानें कम खुल रही थीं. लॉकडाउन में गर्भपात की दवाइयों की आपूर्ति हर जगह पर एक जैसी नहीं थी.

- कोविड के चलते स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ काफी बढ़ गया. कई अस्पतालों को कोविड फैसिलिटी बना दिया गया. डॉक्टर और नर्स कोविड ड्यूटी में लगा दिए गए. हालांकि, ऐसा करना ज़रूरी भी था. पर इससे अन्य बीमारियों के इलाज पर असर पड़ा.

- निजी अस्पतालों में पहले महीने में कई ओपीडी बंद रहीं और क्लीनिक खुलने बंद हो गए. डॉक्टर और स्टाफ में कोरोना वायरस का डर था, स्टाफ अस्पताल या क्लीनिक नहीं पहुंच पा रहे थे और उस वक्त सुरक्षात्मक उपकरण भी आसानी से उपलब्ध नहीं थे.

असुरक्षित गर्भपात का नुक़सान

फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक एंड गाइनेकोलॉजिकल सोसाइटीज़ ऑफ़ इंडिया (फॉगसी) के वाइस प्रेज़िडेंट डॉ. अतुल गनात्रा कहते हैं, “महिलाओं को कोई परेशानी ना हो इसके लिए सरकार और डॉक्टर्स की तरफ से काफ़ी कोशिशें की गई थीं. वीडियो कॉल के ज़रिए मरीज़ों से बात की और उन्हें सही सलाह दी गई. फिर भी इस दौरान कॉन्ट्रेसिप्टव पिल्स, कॉपर टी और गर्भपात की दवाइयां की कमी देखी गई थी.”

जब महिलाएं सुरक्षित तरीक़े से गर्भपात नहीं कर पातीं तो वो असुरक्षित तरीक़े अपनाती हैं.

डॉक्टर अतुल बताते हैं कि महिलाएं घर पर गर्भपात करने के लिए पपीता, गर्म चीज़ें खा लेती हैं, दाई के पास जाती हैं या बिना मेडिकल सलाह के कोई दवाई ले लेती हैं. लेकिन, इससे उन्हें इंफेक्शन हो सकता है और उनकी जान भी जा सकती है. वहीं, तबीयत बिगड़ जाने पर आपदा के हालात में उनका इलाज़ होना भी मुश्किल हो जाता है.

सही स्वास्थ्य सुविधा ना मिलने से महिला ही नहीं उसके पूरे परिवार की ज़िंदगी प्रभावित होती है.

विनोज मेनन एक उदाहरण देते हुए बताते हैं कि सर्वे के दौरान एक मामला आया जिसमें एक गाँव की महिला के चार बच्चे थे और वो पाँचवा बच्चा पैदा नहीं करना चाहती थी. लेकिन, वो लॉकडाउन में गर्भपात नहीं करा पाई और अब उसे पांचवा बच्चा भी पैदा करना पड़ा.

आपदा प्रबंधन में प्रजनन स्वास्थ्य सुविधाएं

हमारे देश में समय-समय पर आपदाएं आती रहती हैं. कहीं बाढ़, कहीं सूखा तो कहीं तूफ़ान. ऐसी स्थितियों में स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रभावित होना स्वाभाविक है. महिलाएं भी इसके असर से बच नहीं पातीं.

विनोज मेनन कहते हैं, “हर आपदा में महिलाओं का प्रजनन स्वास्थ्य प्रभावित होता है. लेकिन, अमूमन ये आपदाएं सीमित क्षेत्र में और सीमित समय के लिए आती हैं तो उनमें महिलाओं की प्रजनन संबंधी परेशानियों पर किसी का ध्यान नहीं जाता. तब खाना, रहना, दवाइयां और कपड़े आदि उपलब्ध कराने और आपदा के नुक़सान को कम करने पर ज़्यादा ज़ोर होता है.”

डॉक्टर अतुल का कहना है कि ये बात समझना होगी कि किसी भी आपदा में डिलीवरी नहीं रुक सकती, गर्भपात भी एक तय समयसीमा में होना ज़रूरी है. लेकिन, आपदा कई महीनों तक रह गई तो गर्भपात का समय निकल जाएगा. ऐसे में महिला को अनचाहा गर्भधारण करना पड़ेगा. इसलिए ये एक तरह से आपात स्वास्थ्य ज़रूरतें हैं जो नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकतीं.”

आपदा प्रबंधन में कैसे इसे प्राथमिकता से जगह दी जाए इसके लिए विनोज मेनन और डॉक्टर अतुल कुछ सुझाव देते हैं.

- प्रजनन सुविधाओं को आपदा प्रबंधन का हिस्सा बनाना चाहिए. हर राज्य में आपदा प्रबंधन एजेंसी है, वो अपनी योजना में इस बात पर भी गौर करे कि कैसे विषम स्थितियों में गर्भनिरोध और गर्भपात की सुविधा दी जा सकती है.

- हमें नए तरीके खोजने होंगे जैसे टेली मेडिसिन. लोगों को अस्पताल आने की ज़रूरत ना हो. वो वीडियो कांफ्रेंसिंग या व्हाट्सऐप वीडियो कॉल के ज़रिए डॉक्टर से संपर्क कर सकें.

- महिलाओं को प्रजनन संबंधी समस्याओं में सहयोग के लिए एक हेल्पलाइन बनाई जाए, ताकि महिलाओं को गर्भनिरोध, गर्भपात और प्रजनन संबंधी सलाह एक जगह पर मिल सके.

- गर्भपात और गर्भनिरोधक दवाइयों का स्टॉक रखा जा सकता है. उन्हें अन्य ज़रूरी दवाइयों का हिस्सा बना सकते हैं. जिस तरह सैनेटरी पैड पहुंचाए जाते हैं उसी तरह ज़रूरतमंदों को डॉक्टरी सलाह पर ये दवाइयां दी जा सकती हैं.

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