लॉकडाउन -33
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ये किसी ने नहीं सोचा था कि इस देश में ऐसी भी सत्ता आएगी जो अपने नागरिकों को बिठाकर नहीं खिला पाएगी। और उसे केवल अपनी रईसी बचाने की ही चिंता रहेगी जबकि इस देश के लोगों ने हर आपदा में सत्ता की पूरी निष्ठा के साथ हमेशा ही मदद की है । यहाँ तक कि सत्ता के आह्वान पर उपवास भी रखा है और अपने घर के ज़ेवर तक दिए हैं। लेकिन वर्तमान हालात में सत्ता ने साफ़ कर दिया है कि वह कुछ नहीं करेगी जिसे अपना जीवन बचाना है वे ख़ुद ही कुछ कर ले।
हैरत की बात तो यह भी है कि अपनी सत्ता की रईसी के लिए 23 कम्पनी बेच चुकी सत्ता , एक बार फिर आधा दर्जन कम्पनियों को बेचने की योजना में व्यस्त है और देश की बदतर होती हालत पर जनप्रतिनिधि अपना वेतन छोड़ने तैयार नहीं है । आपदा को अवसर में बदलने की सोच के चलते आम आदमी के सामने जीवन मरण का प्रश्न खड़ा हो गया है लेकिन सत्ता अभी भी सरकार बनाने बिगाड़ने का खेल खेल रही है ।
कृष्ण कांत कहते हैं- सचिन पायलट सौम्य छवि के योग्य नेता माने जाते हैं. वे उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष थे. उनके राज्य में करीब 28,000 केस हैं. लेकिन वे मुख्यमंत्री बदलने और सत्ता हथियाने का खेल खेल रहे हैं.
अशोक गहलोत तो पुराने चावल हैं. पुराना कांग्रेसी कैसा होता है, यह बताने की जरूरत नहीं. महामारी में लोगों की जान बचाने की जगह वे नेताओं के फोन टैप करवा रहे हैं, सचिन पायलट को नोटिस भिजवाने और निपटाने में मशगूल हैं.
भाजपा ने तो महामारी के बीच ही एक राज्य में सरकार गिराकर अपनी सरकार बनवा ली. उनका तो नारा ही है 'आपदा में अवसर'. राजस्थान का संकट अगर कांग्रेस की 'आपदा' है तो उम्मीद कीजिए बीजेपी उसे 'अवसर' में बदल लेगी.
खुदा न खास्ता राजस्थान में भी बीजेपी की सरकार बन सकती है. भारत की सरकारों और पार्टियों के हाथ में देश का खजाना है. खुला खेल फर्रुखाबादी खेलने में अब कोई शर्म लिहाज का भी मसला नहीं है.
नेता सब एक जैसे होते हैं. चाहे वह शातिर छवि वाला हो, चाहे वह सौम्य छवि वाला हो. चाहे बीजेपी का हो, चाहे कांग्रेस का हो. चाहे युवा हो, चाहे बूढ़ा. धूर्तता नेतागिरी की पहली शर्त है, घाघपन पहली योग्यता और छल-छद्म प्राथमिक जरूरत. यह शायद सत्ता के चरित्र के कारण होता हो.
महामारी के बीच चुनी हुई सरकारें गिराने और बनाने का खेल खेलने के लिए जनता नाराज हुई हो, ऐसी कहीं चर्चा तक न सुनाई दी. जिसमें नेता मशगूल हैं, जनता उसी में मगन है.
इधर दूसरी तरफ़ कई राज्यों में स्थिति बिगड़ते देख लॉकडाउन किया जा रहा है लेकिन केंद्र सरकार की अभी भी हिम्मत नहीं हो रही है कि वह कठोर क़दम उठा सके । दूसरी तरफ़ वेक्सीन को लेकर रोज़ सुखद ख़बर तो आ रही है लेकिन कब क्या होगा कहना मुश्किल है ।
अगर वैक्सीन विकसित हो जाए तो भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि सबसे पहले वैक्सीन किनको मिलेगी? क्योंकि शुरुआती तौर पर वैक्सीन की लिमिटेड सप्लाई ही होगी. ऐसे वैक्सीन किसको पहले मिलेगी, इसको भी प्रायरटाइज किया जा रहा है.
कोविड-19 मरीज़ों का इलाज करने वाले स्वास्थ्यकर्मी इस सूची में टॉप पर हैं. कोविड-19 से सबसे ज़्यादा ख़तरा बुज़ुर्गों को होता है, ऐसे में अगर यह बुज़ुर्गों के लिए कारगर होता है तो उन्हें मिलना चाहिए.
जब तक वैक्सीन नहीं बनती तब तक...
ये बात सच है कि टीका व्यक्ति को बीमारी से बचाता है, लेकिन कोरोना वायरस से बचने का सबसे असरदार उपाय है अच्छी तरह साफ़-सफ़ाई रखना. सोशल डिस्टेंसिग के प्रावधानों को पालना करना.
आपको यह भी ध्यान रखना है कि अगर आपको कोरोना वायरस संक्रमण हो भी जाता है तो 75 से 80 प्रतिशत मामलों में यह मामूली संक्रमण की तरह ही होता है.
इधर छत्तीसगढ़ में भी हालत नाज़ुक होने लगा है । मुख्यमंत्री ने 22 जुलाई से लॉकडाउन की घोषणा तो की है लेकिन लॉकडाउन की ज़िम्मेदारी कलेक्टर पर निर्भर कर दिया है । राजधानी रायपुर में रोज पचास केस आने लगे है ।
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