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अब भाजपा के बड़े बड़े नेता कहने लगे हैं कि लॉकडाउन कोरोना का इलाज नहीं है लेकिन वे भूल जाते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने ही इस देश पर अचानक लॉकडाउन लादा था । और ये सब आनन फ़ानन में इसलिए किया था ताकि मध्यप्रदेश में सरकार बनाने का लोभ को दबाया जा सके । जिस सत्ता ने इन छः सालों में केवल अपनी रईसी की परवाह करते हुए कई पीयुसी बेच दी और राज्यों की सत्ता हासिल करने सत्ता की ताक़त और नफ़रत की राजनीति को प्रमुखता दी उससे आम लोगों की हित की बात ही बेमानी है । जबकि अभी भी ऐसी घटनाएँ हो रही है जो सत्ता के चरित्र पर सवालिया निशान है। 
कोरोना के खौफ की एक घटना राजधानी रायपुर में मंगलवार सुबह देखने को मिली। जहां एक वृद्ध महिला पड़ी हुई थी। जिसके बाद राहगीरों ने इसकी सूचना पुलिस और 108 एंबुलेंस को दी। खबर मिलते ही एंबुलेंस घटना स्थल पर पहुंच गई. लेकिन महिला को ले जाने से इनकार कर दिया। कर्मचारियों  ने कहा-जब तक महिला की कोरोना जांच नहीं हो जाती, हम उसको उठाकर एंबुलेंस में नहीं ले जा सकते हैं। वृद्ध तड़पती रही और दर्द से कहारती रही, लेकिन एंबुलेंस कर्मचारियों ने उसको छुआ तक नहीं। इसके बाद वह खाली गाड़ी लेकर चले गए।

कुछ देर बाद घटना स्थल पर पुलिस पहुंची और  थाना प्रभारी रमेश मरकाम ने रायपुर से एंबुलेंस को मौके पर बुलाया। जहां फिर महिला को अस्पताल ले जाया गया। लेकिन वहां भी डॉक्टरों ने उसका इलाज करने से मना कर दिया। फिलहाल उसकी पहचान नहीं हो सकी है, वहीं आस पास के लोगों का कहना है कि हमने इस महिला को यहां पहले कभी नहीं देखा है।

दूसरी घटना अलीगढ़ के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में एक कोरोना पॉजिटिव मरीज के साथ दुष्कर्म के प्रयास का है. 28 साल की एक युवती ने एक डॉक्टर पर शारीरिक छेड़छाड़ और रेप की कोशिश करने का आरोप लगाया है. जानकारी के मुताबिक युवती एक निजी कंपनी में काम करती है और कोरोना पॉजिटिव होने के बाद 19 जुलाई को अस्पताल में भर्ती हुई थी.

युवती ने शिकायत दर्ज कराई है कि एक डॉक्टर ने उसके साथ रात में बलात्कार करने की कोशिश की. युवती की शिकायत के आधार पर आरोपी डॉक्टर को पुलिस ने पकड़ लिया है.

इधर डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में क्षमताओं और प्रतिक्रियाओं को बढ़ाए जाने की जरूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की दक्षिण पूर्वी एशिया की क्षेत्रीय निदेशक डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा कि हम भारत में राज्यों के स्तर पर क्षमताओं से परिच‍ित हैं। भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में जो उपाय किए गए हैं उनको सभी क्षेत्रों के लिए समान रूप से पर्याप्‍त नहीं माना जा सकता है।  बीते दिनों डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा था कि कोरोना संक्रमण के चलते लोगों के मन में भारी उथल-पुथल हो रही है। लोगों में कोरोना संकट के चलते अवसाद और अलग-थलग रहने के भाव पैदा हो रहा है। लोग चिंता, अवसाद, गुस्सा, दुख, बेचैनी जैसी भावनाओं और समस्याओं के लोग शिकार हो रहे हैं। घरेलू हिंसा के मामलों में भी कई गुना इजाफा हुआ है। उन्होंने कहा कि इससे जीवन और जीवनयापन दोनों प्रभावित हुए हैं।

वहीं आज देशबन्धु में संपादकीय में सरकार की रीति नीति पर गम्भीर सवाल खड़ा किए हैं सम्पादकीय में कहा है 

देश में कोरोना के बढ़ते मामलों के साथ-साथ राहुल गांधी की सरकार की नाकामियों पर आक्रामकता बढ़ती जा रही है। वे लगातार सरकार को आईना दिखाने का काम कर रहे हैं और अलग-अलग तरीकों से सरकार को उसकी खामियां, उसकी गलतियां बता रहे हैं। जब देश में कोरोना ने पैर पसारे नहीं थे और इक्का-दुक्का मामले थे, तभी राहुल गांधी ने सरकार को बीमारी के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को लेकर भी आगाह किया था। तब सरकार ने उन्हें अनसुना किया। राहुल ने फिर लॉकडाउन को पॉज़ बटन मानते हुए सरकार से भावी रणनीतियों के बारे में सवाल किया था। टेस्टिंग पर जोर देने की सलाह दी थी। सरकार ने इस सलाह की भी उपेक्षा की। इसके बाद राहुल गांधी ने अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों से चर्चाएं करनी शुरु कीं, ताकि कोरोना के दौर में पेश आई मुसीबतों का सामना बेहतर ढंग से किया जा सके। मोदी सरकार ने इसका भी मखौल उड़ाया। 

अब राहुल गांधी ने सरकार से सवाल पूछने और तंज कसने शुरु किए हैं। चीन के मामले में राहुल गांधी लगातार सरकार से सही-सही स्थिति बताने की मांग की, पूछा कि हमारे सैनिक अगर उनकी जमीन पर नहीं गए तो कहां मारे गए और अगर उनके सैनिक हमारी जमीन पर नहीं आए, तो फिर कहां से उन्हें खदेड़ा गया। लेकिन चीन पर राहुल के सवालों का जवाब देने की जगह भाजपा इन बातों की पड़ताल में लग गई कि चीन से राजीव गांधी फाउंडेशन को कितना फंड मिला। कुल मिलाकर विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी ने जो भी सवाल उठाए या चिंताएं व्यक्त कीं, उनमें से किसी का संतोषजनक समाधान सरकार की ओर से नहीं किया गया, न ही ज़िम्मेदार सरकार होने के नाते जवाब देने का इरादा दिखाया गया।

सरकार सवाल सुनते नहीं थक रही और राहुल गांधी जवाब मांगते नहीं थक रहे। अब एक बार फिर उन्होंने कोरोना से निपटने में सरकार की नाकामियों पर जोरदार तंज कसा है। देश में कोरोना के मामले 11 लाख के पार जा चुके हैं और सामुदायिक संक्रमण का डर बढ़ गया है। ऐसे में राहुल गांधी ने ट्वीट कर कोरोना काल में मोदी सरकार की सात महीनों की 'उपलब्धियां' गिनाई हैं। राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा-'कोरोना काल में सरकार की उपलब्धियां : फरवरी- नमस्ते ट्रंप, मार्च- एमपी में सरकार गिराई, अप्रैल- मोमबत्ती जलवाई,  मई- सरकार की 6वीं सालगिरह, जून- बिहार में वर्चुअल रैली, जुलाई- राजस्थान सरकार गिराने की कोशिश। इसी लिए देश कोरोना की लड़ाई में 'आत्मनिर्भर' है।' 

इस ट्वीट पर पलटवार करने में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी देर नहीं लगाई। जावड़ेकर ने कांग्रेस पर जवाबी हमला बोलते हुए कहा, 'पिछले छह महीने के दौरान अपनी उपलब्धियां नोट कर लीजिए। फरवरी में शाहीन बाग और दंगे। मार्च में ज्योतिरादित्य और मध्यप्रदेश को खोया। अप्रैल में प्रवासी मजदूरों को भड़काया।' जावड़ेकर ने एक और ट्वीट में बाकी तीन महीनों में कांग्रेस की नाकामियों का जिक्र करते हुए कहा, 'मई में कांग्रेस की ऐतिहासिक हार की छठी सालगिरह,  जून में चीन का बचाव करना और जुलाई में राजस्थान में कांग्रेस का बिखर जाना।'  तुर्की-ब-तुर्की जवाब देने की कोशिश तो भाजपा ने की है, लेकिन इस तरह के लचर जवाबों को देखकर लगा कि भाजपा ने केवल अपनी साख बचाने के लिए जवाब दे दिया, वर्ना उसके पास अपनी सफाई में कहने के लिए कुछ बचा नहीं है।

अगर राहुल की गिनाई उपलब्धियों का जवाब भाजपा को देना था तो कम से कम यही बता देते कि नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम से भारत-अमेरिका संबंधों में कितना सुधार आ गया। मध्यप्रदेश में कोरोना की घोर समस्या के बीच विधायकों को खरीदना और सरकार को गिराना किस तरह जनता की भलाई के लिए सही रहा, मोमबत्ती जलाने से कोरोना का डर कितना दूर हो गया। जब लाखों मजदूर सड़कों पर आ गए थे, तब सरकार की सालगिरह मनाकर क्या हासिल हो गया। बिहार में वर्चुअल रैलियों के कारण बाढ़ से निपटने में सहायता मिली या कोरोना की रोकथाम हो गई। लेकिन मोदी सरकार ने ऐसा कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि वो भी जानती है कि राहुल गांधी ने जो मुद्दे गिनाए, वो वाजिब हैं। इसलिए सरकार आदतन अपनी गलती मानने की जगह विपक्ष पर उंगली उठाने लग गई। 

वह इस तरह तर्क देने लग गई मानो देश को संभालना विपक्ष का काम है और सरकार केवल निजीकरण के लिए सत्ता में आई है। रेलवे से लेकर कोयला और बैंकों से लेकर रक्षा तक सारी चीज़ें निजीकरण की भेंट चढ़ा दी जाएं। जावड़ेकर जी शाहीन बाग और दंगों को कांग्रेस की नाकामी बताते हुए भूल रहे हैं कि कांग्रेस की सरकार न दिल्ली में है, न केंद्र में। आंदोलनों को संभालना और दंगे-फसादों को रोकना सरकार की जिम्मेदारी है और वो इसमें नाकाम रहती है, तो इसका ठीकरा विपक्ष पर नहीं फोड़ा जा सकता। 

जावड़ेकर जी तो मध्यप्रदेश और राजस्थान के सियासी हालात के लिए भी कांग्रेस को इस तरह कोस रहे हैं, मानो वहां कांग्रेस की सरकार गिराने या अस्थिर करने में भाजपा की कोई भूमिका नहीं रही। राजस्थान में तो अभी सरकार कांग्रेस की ही है, लेकिन मध्यप्रदेश में सिंधिया को तोड़ने और अपने गुट में शामिल करने से लेकर राज्यसभा सीट दिलवाने तक का जो खेल भाजपा ने खेला, उसके लिए कांग्रेस को दोष कैसे दे सकती है। प्रवासी मज़दूरों को भड़काने वाली बात भी समझ से परे है। एक सांसद और जिम्मेदार नागरिक होने के नाते अगर राहुल गांधी कुछ मज़दूरों से रास्ते में मिलते हैं या उनकी मदद करते हैं, तो इसे भड़काना कैसे कहा जा सकता है। 

और अगर राहुल गांधी या कांग्रेस ने भड़काया भी, तो भाजपा ने मजदूरों को असहनीय पीड़ा से कैसे बचाया, यही बता देते। मई में कांग्रेस की ऐतिहासिक हार की छठी सालगिरह सुनकर तो ऐसा लगा मानो हम लोकतंत्र में हैं ही नहीं। लोकतंत्र में हार और जीत दोनों का सामना राजनैतिक दलों को करना पड़ता है। जो महज पांच साल के लिए होती है, इसमें छठवीं सालगिरह कहां से आ गई।  2014 की हार के बाद 2019 में भी कांग्रेस हारी, यह तथ्य है, इसे बदला नहीं जा सकता। 2019 में कांग्रेस की हार का एक वर्ष 2020 में पूरा हो चुका है और जो जीतता है, वह अपनी खुशियां मनाए, लेकिन भाजपा अपनी असली जीत किसे मानती है बहुमत हासिल करना या कांग्रेस को मात देना। क्या उसे अपनी उपलब्धियों पर यकीन नहीं, जो वह कांग्रेस की हार की खुशियां मना रही है। मजबूत होने का दावा करती इस सरकार से ऐसे मजबूरी भरे जवाब की उम्मीद नहीं थी।

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