लॉकडाउन -15
13 यदि सरकार वास्तव में कोरोना संकट से मुक्ति चाहती तो वह राज्यों के भरोसे सब कुछ नहीं छोड़ती, लेकिन उसे तो अपनी राजनीति साधनी है, इसलिए उसने संकट के इस दौर में वह सब कुछ किया , जिससे उसकी राजनीति सधतीं है। लेकिन वास्तव में केंद्रीय सत्ता में बैठे लोग राजनीति भी नहीं कर रहे थे , वे अपनी महत्वकांक्ष की उस मृगतृष्णा के पीछे दौड़ रहे हैं, जिसकी परिणिति केवल थक कर गिर जाने में होती है, वे यह भी नहीं समझ पा रहे थे कि 130 करोड़ के देश में जो विविधता भरा जीवन है , उसके लिए किस तरह की सोच और योजना होनी चाहिए। कोरोना से लड़ाई इतनी आसान नहीं है । अनलॉक -१ के सफ़र के जब कुछ भी नहीं सुधरा तो मामूली बंदिशो के साथ अनलॉक -२ की घोषणा कर दी गई, लेकिन अब भी कुछ भी साफ़ नहीं था। व्यापारी , मध्यम वर्ग तो परेशान थे हीं मज़दूर भी रोज़गार नहीं मिलने की वजह से वापस लौटने लगे । हालाँकि लौटने वालों की संख्या कम थी , लेकिन उनकी व्यथा सरकार की विफलता को उजागर कर रहा था। वापस शहर लौटने वाले मज़दूरों ने साफ़ कहा कि राशनकार्ड नहीं होने के कारण उन्हें मनरेगा में काम नहीं दिया और न ही रोज़गार की कोई व्यवस्था है , ऐस